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________________ जैन धर्म और ब्रज : २९ 'विविध तीर्थकल्प' से ज्ञात होता है कि ८वीं शताब्दी में ग्वालियर के राजा आमराज के गुरु वप्पभट्टसूरि ने मथुरा तीर्थ का पुनरुद्धार किया। उन्होंने पत्थरों से परिवेष्ठित प्राचीन जैन स्तूप की मरम्मत करवायी। मध्यकाल से बहुसंख्यक कलावशेष मथुरा तथा उसके आस-पास से प्राप्त हुए हैं। तत्कालीन पुरावास्तु से ज्ञात होता है कि इस काल तक मथुरा के अतिरिक्त बटेश्वर (आगरा) भी जैन धर्म का महत्त्वपूर्ण केन्द्र हो गया था। १६ वीं शताब्दी में अकबर के काल तक मथुरा जैन स्तूपों के जीर्णोद्धार का केन्द्र बना रहा। आज भी चौरासी नामक ऐतिहासिक स्थल जैनियों का प्रमुख तीर्थ स्थल बना हुआ है। जहाँ आज भी जैन धर्म के आयोजन होते रहते हैं। वस्तुत: मथुरा का जैन समाज प्राचीन काल से ही सहिष्णुता का आदर्श रहा है। जब पूरे देश में दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदायों में बँटकर जैन धर्म जड़ता को प्राप्त हो रहा था तब भी कुछ शताब्दियों तक मथुरा में इस प्रकार का कोई संघर्ष नहीं दिखायी पड़ता। यहाँ सैकड़ों वर्षों तक यह प्रयास रहा कि दिगम्बर आम्नाय तथा श्वेताम्बर आम्नायों की खाई पाट दी जाय।“ यहाँ का वास्तु भी हमें उदार विचारधारा का संकेत देता है। कंकाली से जैन वास्तु के अलावा ब्राह्मण एवं बौद्ध धर्म से सम्बन्धित मूर्तियाँ भी प्रचुर संख्या में मिली हैं, यथा- बलराम, कार्तिकेय, सूर्य, बुद्ध तथा बोधिसत्व आदि की मूर्तियाँ । इससे स्पष्ट है कि प्राचीन काल में धार्मिक संकीर्णता यहाँ नहीं थी। यही धार्मिक सहिष्णुता किसी न किसी रूप में आज भी जैन समाज में मिलती है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि प्राचीन ब्रज में जैन धर्म की जड़ें काफी मजबूती से गहरे तक जमी थीं। जैन धर्म के इतिहास में देवनिर्मित स्तूप के कारण यह स्थल और भी महत्त्वपूर्ण हो गया था। जैन धर्म की प्रभावशीलता का ज्ञान हमें साहित्य एवं पुरातत्त्वों दोनों से प्राप्त होता है। जहाँ प्राचीन काल में कंकाली स्थल जैन तीर्थ था, वहीं अद्यतन जैन चौरासी स्थल। इस प्रकार जैन धर्म का ब्रज में गौरवशाली इतिहास रहा है जिसकी महत्ता अन्य धर्मों से कम करके आँकना अन्याय होगा। बल्कि यह कहा जा सकता है कि अन्य धर्मों की अपेक्षा ब्रज में जैन धर्म की जड़ें ज्यादा मजबूत थीं। सन्दर्भ : सिंह, शिव प्रसाद, 'धर्म एवं कला का तीर्थः मथुरा', साहित्यधर्मिता, भारती संस्थान, जौनपुर, ३६ वाँ अंक, १९९६, पृ०-२६ २. अग्रवाल, वासुदेव शरण, जैन धर्म और ब्रज, ब्रज वैभव, भारती अनुसंधान भवन, मथुरा, १९७२, पृ०-८१
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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