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________________ हिन्दी अनुवाद इस प्रकार शत्रु के भय से अपने आश्रय को चाहते सभी नगरलोक वायु से आहत सक्तु के पुञ्ज की तरह अन्यान्य गाँव में बिखर गये हैं। गाहा एवं भणिऊण नरो विहिय पणामो स गंतुमारद्धो । चित्तगईवि य ताहे सोच्चा तव्वयणयं सहसा ।। २०७ । । पहउ व्व मोग्गरेणं गिलिओ इव रक्खसेण खुहिएण । वज्जेण ताडिओ इव दुक्खं अइदूसहं पत्तो ।। २०८ । । युग्मम् ।। संस्कृत छाया एवं भणित्वा नरो विहितप्रणामः स गन्तुमारब्धः । चित्रगतिरपि च तदा श्रुत्वा तद्वचनकं सहसा ।। २०७ ।। प्रहत इव मुद्गरेण गिलित इव राक्षसेन क्षुधितेन । वज्रेण ताडित इव दुःखमतिदुस्सहं प्राप्तः ।। २०८ । । युग्मम् ।। गुजराती अर्थ ए प्रमाणे कहीने करेला नमस्कारवाळी ते माणस जवा माटे तैयार थयो, त्यारे तेना वचन सांभळी ने चित्रगति पण एकदम मुद्गरथी हणायेलानी जेम भूख्या राक्षस वड़े कोळीयो करायेला नी जेम वज्रथी ताडन करायेलानी जेम अति दुस्सह दुःखने पाम्यो । हिन्दी अनुवाद इस प्रकार बोलकर नमस्कार करके वह आदमी जाने को तैयार हुआ तब उसका कहना सुनकर चित्रगति भी सहसा मुद्गर से मारे गए की तरह, भूखे राक्षस से कवलित की भाँति, अति दुःसह दुःख को पाया। गाहा अह चिंतिउं पयत्तो दट्ठव्वा कत्थ सा मए बाला । मह हियय- कयाणंदा एवं विहियम्मि हय - विहिणा ? । । २०९ ॥ संस्कृत छाया अथ चिन्तयितुं प्रवृत्तो, द्रष्टव्या कुत्र सा मया बाला । मम हृदयकृतानन्दा एवं विहिते हत विधिना ? ।।२०९ ।। 302
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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