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________________ } गाहा नीसारिओ य भाया जिट्ठो ससुरस्स सो गओ नयरे । एसोवि इमम्मि पुरे अच्छइ रज्जं अणुहवंतो ।। १८८ ।। संस्कृत छाया निस्सारितश्च भ्राता ज्येष्ठः श्वशुरस्य स गतो नगरे । एषोऽप्यस्मिन् पुरे आस्ते राज्यमनुभवन् ।। १८८ । । गुजराती अर्थ काढी मुकायेल मोटी भाई ससराना नगरमा गयो अने राज्यने अनुभवतो नानो भाई आ नगरमा रहयो । हिन्दी अनुवाद बाहर निकाल दिया गया बड़ा भाई श्वसुर के गाँव में गया और छोटा भाई राज्य करते हुए नगर में रहा । गाहा ससुरेण भाणुगइणा किल विज्जा रोहिणी उ से दिन्ना । सो साहिउं पयत्तो सिद्धं च इमस्स विज्जाए ।। १८९ ।। संस्कृत छाया श्वशुरेण भानुगतिना किल विद्या रोहिणी तु तस्मै दत्ता । स साधयितुं प्रवृत्तः शिष्टं चास्य विद्यया ।। १८९ ।। गुजराती अर्थ भानुगति ससुरा ए तेने रोहिणीविद्या आपी छे अने ते विद्या ज्वलनप्रभ हमणा साधवा माटे तैयार थयो छे, तेम प्रज्ञप्ति विद्या ए कनकप्रभने कहयुं । हिन्दी अनुवाद भानुगति ससुर जी ने उसे रोहिणीविद्या दी और ज्वलनप्रभ उस विद्या को सिद्ध करने के लिए तैयार हुआ है। ऐसा प्रज्ञप्तिविद्या ने कनकप्रभ से कहा । गाहा तत्तो तव्विग्धट्ठा राया कणगप्पहो गओ तत्थ । न य खोभिओ स तेणं मणेण भीओ तओ एसो ।। ११० ।। संस्कृत छाया ततस्तद् विघ्नार्थं राजा कनकप्रभो गतस्तत्र । न च क्षोभितः स तेन मनसा भीतस्तत एषः । । १९० ॥ 294
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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