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________________ संस्कृत छाया किं भवेदिन्द्रजालमथवा सत्यं ह्युद्वसमेतद् । किं कुपितेन सुरेणापहृतमस्मात् स्थानात् । । १८२ । । अथवा भयात् कस्यापि नष्टो लोकोऽस्मान्नगराद् । एवं विचिन्तयन् चित्रगतिः प्रविशति यावद् ।। १८३ ।। तावच्च सन्मुखमायन्नेकः पुरुषः दृष्टस्तेन । उपचारपूर्वकं स मधुरगिरेदं भणितः । । १८४ । । त्रिभिः कुलकम् ।। गुजराती अर्थ - शुंआ इन्द्रजाल छे के साचे ज उज्जड थयु छे? अथवा कुपित थयेला देव बड़े आ स्थान हरायुं छे? अथवा कोईना भयथी आ नगरथी लोको भागी गया छे? ए प्रमाणे विचारतो चित्रगति ज्यांसुधी नगरमा प्रवेशे छे. तेलीवारमां सन्मुख आवतो एक पुरुष तेणे जोयो, विनयपूर्वक मधुरवाणी वड़े तेणे आ प्रमाणे कहयुं । हिन्दी अनुवाद क्या यह इन्द्रजाल है कि सच में ही उजड़ (बन गया) है ? अथवा कुपित देव द्वारा यह स्थान लोक से अपहरित कर लिया गया है। लोग भाग गये हैं? इस प्रकार सोचता अथवा किसी के भय से नगर के हुआ चित्रगति नगर में प्रवेश करता है। उसी वख्त सन्मुख आते हुए एक आदमी को देखा और विनयपूर्वक मधुरवाणी से इस प्रकार कहा गाहा भद्द - मुह ! किं निमित्तं उव्वसियं पुर- वरं इमं सहसा । तत्तो य तेण भणियं साहिज्जंतं निसामेहि ।। १८५ । । संस्कृत छाया हे भद्रमुख! किं निमित्त मुदुषितं पुरवरमिदं सहसा । ततश्च तेन भणितं कथ्यमानं निशामय । । १८५ । । गुजराती अर्थ हे सुन्दर ! मुखवाळा 'कया कारणे आ नगर एकदम ज उज्जड यु छे." त्यारे तेणे कहयुं तमे सांभळो हुं कहुं छु। 292
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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