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संस्कृत छाया
त्वं पुनर्गच्छ शीघ्रं कथयतु ज्वलनप्रभाय वृत्तान्तम् ।
ईषद्धसित्वा ततो दमघोष एवमुल्लपति ।।१६६।। गुजराती अर्थ___ वळी तु जल्दी थी जा अने ज्वलनप्रथ ने समाचार कहे, त्यारपछी दमघोष जराक हसी ने आ प्रमाणे कहेवा लाग्यो। हिन्दी अनुवाद
तू जल्दी जा और ज्वलनप्रभ को समाचार कहना, अत: दमघोष थोड़ा हँसकर इस प्रकार कहने लगा। गाहा
पच्चक्खम्मिवि दिह्र कुमार! किं एत्थ वंक-भणिएहिं? ।
किं नवि दिट्ठा कन्ना तुह हत्था तं पगिण्हंती? ।।१६७।। संस्कृत छाया
प्रत्यक्षेऽपि दृष्टे कुमार! किमत्र वक्रभणितैः? ।।
किं नहि दृष्टा कन्या तव हस्तात् तत् प्रगृह्णन्ती? ।। १६७।। गुजराती अर्थ
'हे कुमार! प्रत्यक्ष जोये छते पण वक्र घोलवा वड़े अहीं शुं? तारा हाथमाथी तेने ग्रहण करती कन्या शुं नथी जोवाई! हिन्दी अनुवाद
हे कुमार! प्रत्यक्ष देखने पर कुटिलता करने से क्या लाभ है? तेरे हाथ में से मदारत्न को लेती उस कन्या को क्या नहीं देखा (है तुमने)? गाहा
ता कवडं मोत्तूणं जहट्ठियं चेव साहिउं जुत्तं ।
कन्नाए मूल-सुद्धिं उवलभिउं आगमिस्सामि ।।१६८।। संस्कृत छाया
तस्मात् कपटं मुक्त्वा यथास्थितमेव कथयितुं युक्तम् । कन्याया मूलशुद्धिमुपलभ्यागमिष्यामि ।।१६८।।
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