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________________ । संस्कृत छाया एवं भणित्वा विद्याऽ दर्शनं झटित्युपगता तदा । अहं ज्वलनप्रभेण प्रस्थापितस्ते पार्श्वे ।। १३० ।। गुजराती अर्थ आ प्रमाणे कहीने ज्यारे विद्या जल्दी थी अद्रश्य थई त्यारे ज्वलनप्रथे मने तमाटी पासे मोकल्या छ। हिन्दी अनुवाद इस प्रकार कहकर जब विद्या जल्दी से अदृश्य हो गई तब ज्वलनप्रभ ने मुझको आपके पास भेजा है। गाहा एवं च तेण भणिओ दमघोसेणं अमूढ-चित्तो सो। चित्तगई संजाओ चलिओ सह तेण निय-ठाणं ।।१३१।। संस्कृत छाया एवं च तेन भणितो दमघोषणामूढचित्तः सः । चित्रगतिः सञ्जातश्चलितः सह तेन निजस्थानम् ।। १३१।। गुजराती अर्थ आ प्रमाणे दमघोषे कहयुं अने अमूढचित्तवाळो थयेलो चित्रगति ते तेनी साथे पोताना स्थाने चाल्यो। हिन्दी अनुवाद ___ इस प्रकार कहने पर अमूढ चित्तवाला चित्रगति उनके साथ अपने स्थान पर चला। गाहा एत्यंतरम्मि न्हवणे वित्त- प्यायम्मि जिण-वरिंदस्स । पविसइ नयरे लोगो नाणाविह-वाहणारूढो ।।१३२।। संस्कृत छाया अत्रान्तरे स्नपने वृत्तप्राये जिनवरेन्द्रस्य । प्रविशति नगरं लोको नानाविध-वाहनारूढः ।।१३२।। १. सूत्र ४।३।१३५ प्राकृत व्याकरण (सिद्धहेम) से द्वितीया 271
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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