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________________ गाहा तत्तो ते दोवि जणा समागया झत्ति नियय-नयरम्मि । चित्तगइणा य कहियं केवलि-वयणं तु निय-पिउणो ।।९५।। संस्कृत छाया ततस्तौ द्वावपि जनौ समागतौ झटिति निजनगरे । चित्रगतिना च कथितं केवलिवचनं तु निजपितुः ।। ९५।। गुजराती अर्थ त्यार पछी ते चने पण जल्दी थी पोताना नगर मां आव्या, अने चित्रगति स पोताना पिता ने केवलीभगवंत ना वचन कह्या। हिन्दी अनुवाद बाद में दोनों ही शीघ्रता से अपने नगर में आए और चित्रगति ने अपने पिता को केवली भगवंत के वचन कह सुनाए। गाहा तत्तो य भाणुगइणा सोहण-रिक्खम्मि रोहिणी विज्जा । जामाउय-तणयाणं दोण्हवि समयं विदिन्नत्ति ।। ९६।। संस्कृत छाया ततश्च भानुगतिना शोभन: रोहिणीविद्या । जामातृतनयाभ्यां द्वाभ्यामपि समकं वितीर्णेति ।।९६ ।। गुजराती अर्थ हवे भानुगीतर शुधनक्षत्र मां रोहिणीविद्या जन्माई सहित पुत्र ने आपी। हिन्दी अनुवाद अब भानुगति ने शुभ नक्षत्र में रोहिणी विद्या जमाई के साथ पुत्र को दी। गाहा भणिया य पुव्व-सेवं कर-जाव-विहाणओ कुणह सम्मं । वसिमम्मि ठिया समयं छम्मासं जाव तो पच्छा ।।९७।। संस्कृत छाया भाणतौ च पूर्वसेवां करजाप-विधानतः कुरुतं सम्यक् वसतौ स्थितौ समकं षण्मासं यावत् ततः पश्चात् ।। ९७।। 257
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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