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साहित्य सत्कार : ११५
विराटता का रूपायन करते प्रतीत होते हैं। उन्होंने अपनी अनुभूति की उष्मा से सर्जित ध्यान पथ' पुस्तक को आम पाठकों के लिए प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक स्वाभाविक सर्जनात्मकता और व्यावहारिक उपादेयता दोनों को सिद्ध करती है।
डॉ० जयन्त उपाध्याय
दर्शन एवं धर्म विभाग
का०हि०वि०वि०, वाराणसी पुस्तक- अष्टपाहुड : एक अध्ययन, लेखक- डॉ. राजेन्द्र कुमार बंसल, प्रका०समन्वय वाणी जिनागम शोध संस्थान, १२९ जादोन नगर 'बी', स्टेशन रोड, दुर्गापुरा, जयपुर-१८, पृ०- ८८, मूल्य- रु. १०.००।
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित अष्टपाहुड जैन धर्म-दर्शन की अनुपम कृति है। रचनाकार ने इसमें एक ओर जहाँ दर्शन की गूढ़ता को सुलझाने का प्रयास किया है वहीं दूसरी ओर धर्म के मर्म को भी स्पष्ट किया है। आचार्य कुन्दकुन्द ने अपनी बौद्धिक मेधा से धर्म और दर्शन दोनों में संतुलन कायम करने का समुचित प्रयास किया है जो उनके वैशिष्ट्य का परिचायक है। जैन धर्म की सहजता और सहभाविता का प्रभाव आचार्य श्री की लेखन विधा पर स्पष्ट गोचर होता है।
समीक्ष्य पुस्तक 'अष्टपाहुड : एक अध्ययन' जीवन तथा जीवन-दृष्टि की अनेकानेक संभावनाओं तथा जीने की प्राविधिक सामंजस्य की स्थिति को स्पष्ट करता है।मोक्ष जीवन की एक प्रायिकताहै-सेसंयोजित होकर आम-जनकी सारी संभावनाओं को प्रकाशित करती यह पुस्तक अपनी उपादेयता को सार्थक करती है। यह बताती है कि मोक्ष-प्राप्ति हेतु कौन से साधन आवश्यक या अनिवार्य हैं। यह ग्रन्थ आत्मध्यान की वह सीढ़ी है जिसके माध्यमसे भव-भ्रमण के अवरोधको निःसारित कियाजा सकता है। चित्त भ्रमण पर विजय प्राप्त कर ही मुक्तिमार्ग का चयन संभव है।
भारतीय संस्कृति को पोषित करने की परम्परा में मुक्तिमार्ग की संवाहिकायह पुस्तक सुधीजनों को मनोविकास के माध्यम से जीवनोत्कर्ष के लिए प्रेरित करती है। अत: यह पठनीय व संग्रहणीय है।
संजय कुमार सिंह दर्शन एवं धर्म विभाग का हि०वि०वि०, वाराणसी