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________________ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३ / अप्रैल-सितम्बर २००७ एतं वै तमात्मानं विदित्वा ब्राह्मणाः पुत्रैषणायाश्च वित्तैषणायाश्च लोकैषणायाश्च व्युत्थायाथ भिक्षाचार्य्यं चरन्ति । तस्माद् ब्राह्मणः पाण्डित्य * निर्विध बाल्येन तिष्ठासेत् । बाल्यश्च पाण्डित्यश्च निर्विद्याथ मुनिरमौनश्च मौनश्च निर्विधाथ ब्राह्मणः । ' ४६ अर्थात् “इसी आत्मतत्त्व को जानकर ब्राह्मण पुत्रैषणा, वित्तैषणा और लोकैषणा-रूप 'एषणात्रय' से जागकर ( मुक्त होकर) भिक्षु वृत्ति का आचरण करते हैं। इसलिए ब्राह्मण पाण्डित्य अर्थात् आत्म-विज्ञान को 'निर्विध' अर्थात् सम्यक् रूप से जानकर बाल्यभाव में स्थित होकर रहे । यहाँ बाल्य भाव का अर्थ है- ज्ञान के बल का भाव। पाण्डित्य और बाल्यभाव को सम्यक् जानकर 'मुनि' बने और मौन और अमौन को सम्यक् रूप से समझ कर कृतकृत्य हो जाय । " यहाँ सारे प्रकरण पर आचार्य शङ्कर का भाष्य द्रष्टव्य है। आचार्य के अनुसार, "ब्राह्मण ही इस एषणात्रय से व्युत्थान का अधिकारी है" ब्राहमणानामेवाधिकारो व्युत्थानतो ब्राह्मणग्रहणम् । ' एवं उसके ब्राह्मण्य की सार्थकता भी इसी में है कि वह ब्रह्मविद् हो जाय एतावद्धि ब्राह्मणेन कर्त्तव्यं यदुत सर्वानात्म प्रत्ययतिरस्करणम् । एतत्कृत्वा कृतकृत्यो योगी भवति । मौनं नाम अनात्मप्रत्यय तिरस्करणस्य फलं तच्च निर्विधाथ ब्राह्मणः कृतकृत्यो भवति । ब्रह्मैव सर्वमिति प्रत्यय उपजायते । स ब्राह्मणः कृतकृत्योऽतो ब्रह्मणः । निरुपचरितं हि तदा तस्य ब्राह्मण्यं प्राप्तम् । अत आह- स ब्राह्मणः केन स्यात्केन चरणेन भवेत? येन स्याद् येन चरणेन भवेत्तेनेदृश एवायम् । येयं ब्राह्मण्यावस्था सेयं स्तूयते । १० इससे तो यही प्रमाणित होता है कि वर्णान्तर्गत ब्राह्मण ही जब उपर्युक्त साधना से संस्कृत होता है तब वह अपने आप को अन्वर्थकता प्रदान करता है और 'ब्राह्मण' और 'मुनि' में तत्त्वतः अन्तर या विरोध नहीं है । " वेदार्थोपबृंहणात्मक पुराणोत्तम श्रीमद्वागवत में भी कहा गया है ब्राह्मणस्य हि देहोऽयं क्षुद्रकामाय नेष्यते । कृच्छ्राय तपसे चेह प्रेत्यानन्तसुखाय च । । ११ इस प्रकार समग्र वैदिक परम्परा, 'चातुर्वर्ण्य व्यवस्था के अन्तर्गत ब्राह्मण को ब्रह्मविविदिषा-युक्त ब्राह्मण' से सर्वथा पृथक् होने का कहीं भी सङ्केत नहीं देती
SR No.525061
Book TitleSramana 2007 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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