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निरयावलिया-कल्पिका : एक समीक्षात्मक अध्ययन : ३१
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सन्दर्भ
नन्दीसूत्र, ४४, सम्पा०-युवाचार्य मधुकर मुनि, प्रकाशक- आगम प्रकाशन समिति ब्यावर, १९८२ तत्त्वार्थसूत्र, पृ०-९, विवे- पं० सुखलाल संघवी, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी, १९७६ अन्यथा हि अनिबद्धमंगोपांमगशः समुद्रप्रतरणवदुश्ध्यवसेयं स्यात् । तत्त्वार्थभाष्य, १-२० विधिमार्गप्रपा, पृ०- ४८-५७, सम्पा०- मुनि जिनविजयेन, प्रका०- श्री
जिनदत्त सूरि ज्ञान भण्डार, गोपीपुरा, सूरत, १९४१ ५. मालवणिया, पं० दलसुखभाई, जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-१,
प्रस्तावना, पृ०-३९, प्रका०- पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी, १९६६ वही, पृ०-३९ वही, पृ०-३०-३१ कापडिया, हीरालाल र०, हिस्ट्री ऑव कैनोनिकल लिटरेचर ऑव जैनाज,
पृ०-२९, ३४ ९. नन्दीचूर्णि, पृ०-४७, मुनि पुण्यविजय, प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, वाराणसी,
१९६६
नन्दीवृत्ति, २३, प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, वाराणसी, १९६६ ११. नदीसूत्र, मलयगिरिवृत्ति, पृ०- २०३ १२. अंगार्थस्पष्ट बोधिविधायकानि उपांगानि, औपपातिक टीका।
श्रेणी: कायत्ति श्रेणिको मगधेश्वर:। अभिधानचिन्तामणिः, स्वोपज्ञवृत्ति, मर्त्यकाण्ड, ३७६, सम्पा०- श्री विजयधर्मसूरि, प्रका०- नत्थालाल लक्ष्मीचंद वकील,
भावनगर, वीर सं० २४४१ १४. स पित्राष्टादशसु श्रेणि स्ववत्तारित:, अतोऽस्य श्रेष्यो बिम्बिसार इति ख्यातः।।
विनयपिटक, गिलगिट मांस्क्रपट। १५. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ३/८३ सम्पा०- मधुकर मुनि, आगम प्रकाशन समिति,
ब्यावर, १९८६ तथा जातक,मूगपक्ख जातक भाग-६, भदन्त आनन्द __ कौसल्यायन, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, सम्वत् १९८८ १६. महावस्तु, भाग-३, ४४२-४४३, डॉ० एस० बागचि, मिथिला संस्थान,
दरभंगा, १९७० १७. Majumdar, R.C., Corporate Life in Ancient India,, Cosmo
Publication, New Delhi, 1994, page-4
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