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________________ २८ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३ / अप्रैल-सितम्बर २००७ श्रेणिक ने स्वयं मृत्यु का वरण किया था। बौद्ध परम्परा में तो राजा को तापनगेह में डालकर क्षुधा से पीड़ित कर मारा गया था और उसे मरवाने वाला स्वयं अजातशत्रु था। ३३ जैन परम्परा के अनुसार कूणिक अपनी रानी पद्मावती के कहने पर अपने छोटे भाइयों हल्ल कुमार और वेहल्ल कुमार से पिता द्वारा दिये गये सेचनक हाथी व अट्ठारहसरा हार (अट्ठारह लड़ी वाला) भी ले लेना चाहता है, क्योंकि ये दोनों श्रेणिक के पूरे राज्य के बराबर थे । ३४ किन्तु दोनों भाई हल्ल कुमार और वेहल्ल कुमार हाथी - हार और अपने अन्तःपुर को लेकर अपने नाना महाराज चेटक के पास वैशाली चले आते हैं। कूणिक को जब यह पता चलता है तो वह अपना दूत भेजता है । चेटक कहते हैं कि शरणागत की रक्षा करना मेरा धर्म है । यदि कूणिक हाथी और हार के बदले आधा राज्य दे तो हम हार और हाथी लौटा सकते हैं। कूणिक को जब यह संदेश प्राप्त हुआ तो उसे अत्यन्त क्रोध आया। वह अपने दसों भाईयों की सेना को लेकर वैशाली पहुँचा। कूणिक की सेना में ३३ सहस्र हाथी, ३३ सहस्र घोड़े, ३३ सहस्र रथ और ३३ करोड़ पदाति थे। राजा चेटक ने नौ मल्ल के, नौ लिच्छवी- इन अट्ठारह काशी- कोशल राजाओं को बुलाकर उनसे परामर्श किया। सभी ने कहा- शरणागत की रक्षा करना क्षत्रियों का कर्तव्य है। वे सभी युद्ध के मैदान में आए। चेटक की सेना में ५७ सहस्र हाथी, ५७ सहस्र घोड़े, ५७ सहस्र रथ और ५७ करोड़ पदाति सैनिक थे। राजा चेटक भगवान महावीर का परम उपासक थे। उन्होंने श्रावक के द्वादश व्रत ग्रहण किए थे। चेटक ने एक विशेष नियम भी ले रखा था कि मैं एक दिन में एक ही बार बाण चलाऊँगा। उनका बाण कभी भी निष्फल नहीं जाता था । ३५ अजातशत्रु कूणिक की ओर से प्रथम दिन कालकुमार सेनापति के रूप में उपस्थित हुआ। उसने गरूड़व्यूह की रचना की। राजा चेटक ने भी शकटव्यूह की रचना की। दोनों में भयंकर युद्ध हुआ । राजा चेटक ने अमोघ बाण का प्रयोग किया जिससे कालकुमार जमीन पर गिर पड़ा और मरकर नरक में गया। इसी तरह एक-एक कर दस भाई सेनापति बनकर क्रमश: पहले दिन कालकुमार, दूसरे दिन सुकाल कुमार, तीसरे दिन महाकाल कुमार, चौथे दिन कृष्णकुमार, पाँचवे दिन सुकृष्ण कुमार, छठे दिन महाकृष्ण कुमार, सातवें दिन वीरकृष्ण, आठवें दिन रामकृष्ण, नौवें दिन पितृसेनकृष्ण और दशवें दिन महासेनकष्ण
SR No.525061
Book TitleSramana 2007 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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