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________________ साहित्य सत्कार : २२९ संवेदनशील बना दिया है। इस प्रचलित संवेदनहीनता को धर्मों की फुलवारी से चुनचुन कर शृंगारित किया गया है। अहिंसा और शांति की अवधारणा में जैनधर्म की प्रासंगिकता और प्रयोगधर्मिता को विशेषरूप से सर्वग्राह्य और समन्वयकारी बताना समीक्ष्य पुस्तक का प्रधान लक्ष्य है। पुस्तक दस छोटे-बड़े अध्यायों में विभक्त है। अध्याय चार 'राष्ट्रीय चरित्र' की व्याख्या है। कहना न होगा कि आज चरित्रहीनता ही नया चरित्र का पैमाना हो गया है ऐसी स्थिति में अहिंसक-व्यवहार की परिकल्पना तो जरूर ग्राह्य है, परन्तु जमीनी धरातल पर व्यावहारिक-अहिंसा का आग्रह ही पुस्तक-प्रणयन का सहोदर भाव है। अध्याय सात 'आतंकवाद और अहिंसा' को प्रस्तुत है। ध्यातव्य है कि वाद का विवाद तभी होता है जब कहीं-न-कहीं से किसी भी रूप में शोषण होता है। आतंकवाद अन्याय-विषमता-असंतोष का त्रि-आयामी विस्फोट है जो शोषण के जल से सिंचित है। इससे मुक्ति का पथ प्रदर्शित करना लेखक द्वय की व्यावहारिक दार्शनिकता है। पुस्तक में काव्य पंक्तियों की मनोहारी प्रस्तुति से लेखकद्वय के काव्य सृजनधर्मा होने का परिचय मिलता है। सच भी है काव्य की प्रेरणा से परिवर्तन स्वाभाविक भी हो जाता है। परिवर्तन चाहे मन का हो या हृदय का- अहिंसा असरकारी अव्यय है। पुस्तक का कवर-पृष्ठ शांत-सौन्दर्य का विभाव देता है। विषयगत और विषयेतर-दोनों ही अध्येताओं के लिए पुस्तक पठनीय और समसामयिक संदर्भ में प्रेरणादायी है। डॉ० डी०एन० प्रसाद प्राध्यापक, अहिंसा एवं शान्ति अध्ययन म०गां० अन्तर०हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा जैनधर्म की श्रमणियों का बृहद इतिहास- लेखिका- डॉ० साध्वी विजय श्री 'आर्या'; प्रकाशक- भारतीय विद्या प्रतिष्ठान, एम- २/७७, सेक्टर १३, आत्म वल्लभ सोसायटी, रोहिणी, दिल्ली- ११००८५; आकार-क्राऊन; पृष्ठ- ५६+ १०१२= १०६८; मूल्य- २०००/- रुपये (दो हजार रूपये)। भारतीय संस्कृति में अनेक धर्मों का समन्वय है। यहाँ पर सभी को बराबर स्थान प्राप्त है। कोई धर्म ऊंचा या नीचा नहीं है। विभिन्न धर्म परम्पराओं के बीच में श्रमण परम्परा में जैन धर्म का अपना अलग स्थान है। जैन धर्म का प्रारम्भ प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव के समय से माना जाता है। वर्तमान में चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का शासन काल चल रहा है। जैन धर्म में पुरुष ही नहीं स्त्रियां भी दीक्षित होती हैं। उनकी भी अपनी गौरव गाथा है। पुरुषप्रधान समाज होने के कारण आज भी स्त्रियों की अवहेलना हो रही हैं। साध्वीश्री ने एक क्रांतिकारी कदम बढ़ाया
SR No.525061
Book TitleSramana 2007 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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