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श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३ अप्रैल-सितम्बर २००७
साहित्य सत्कार
पुस्तक समीक्षा
अहिंसा और विश्वशान्ति, लेखक - डॉ० रवीन्द्र कुमार जैन एवं डॉ० शशिप्रभा जैन, प्रकाशक- मेघ प्रकाशन, दिल्ली; आकार - डिमाई; पृ०-८० ; मूल्य
रु०-५० १
प्रकृति प्रदत्त किसी भी जीव- अजीव के प्रति अहितकारी भाव का मन में आना हिंसा है और ठीक इसके विपरीत भाव का अर्थबोध अहिंसा है। आज विश्व-मनस अहिंसा के लिए आकुल है। प्रत्येक स्तर से अहिंसा को अंगीकार कराने का प्रयास निरन्तर जारी है। शांति की चाह में आज विश्व अशांत हो गया है। स्वभावतः मनुष्य शांत और सुगमता से जीवन का निर्वाह चाहता है। विसंगतियाँ उसे अशांत करती हैं और ऐसी स्थिति में वह स्वाभाविकता से विलग होकर या विलुप्त होकर शांति की तलाश में लग जाता है।
रही बात विश्वशांति की तो जैसे ही 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का कलेवर मनुष्य ने छोड़ा, अशांति जागृत हुई और विश्वमानव ने 'विश्वशांति' की परिकल्पना कर डाली। आज विश्व जितना व्याकुल और भयाक्रांत है 'विश्वशांति' के लिए शायद इतना भयाक्रांत कभी नहीं था। जीवन था, जिजीविषा थी, जीवन-व्यवहार था, चरित्र था, समभाव था। आज पूरा विश्व विषमभाव में है, क्षणिक व्यामोह में फँसा है, वर्चस्व की बयार उस पर हावि है, ऐसी स्थिति में अहिंसा और शांति के घटक ही उसे समपथ के पथिक बनायेंगे और तब जाकर शांति का संधान समुन्नत होगा।
समीक्ष्य पुस्तक 'अहिंसा और विश्वशांति' लेखक डॉ० रवीन्द्र कुमार : जैन तथा डॉ० शशिप्रभा जैन की अद्यतन कृति है जो विश्वजनीन शाश्वत मूल्यों की प्रेरणा देने वाले चिंतन को प्रसारित करने के लिए संकल्पशील प्रकाशक मेघ प्रकाशन, दिल्ली की प्रस्तुति है । प्रस्तुत पुस्तक ज्वलंत समसामयिक समस्याओं के प्रकरण से उभरे अनागत भविष्य की चिंता की व्याख्या से परिपूर्ण है। इन व्याख्याओं के माध्यम से समाधान की तलाश इस पुस्तक का उद्देश्य है।
भयाक्रांत जीवन, अज्ञातभय, चरित्र का संकट, विसंगतियों की परिपाटी, विषमता भरा आत्म-केन्द्रित जीवन ने जिजीविषा को समाप्त कर मानव जीवन को