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________________ १० : श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३/अप्रैल-सितम्बर २००७ सिद्ध किये हुए ये ही मंत्र सन्ध्या के समय तीनों अग्नियों में देव-पूजनरूप नित्य कर्म करते समय 'आहुति मंत्र' कहलाते हैं (४०/७९)। इसके बाद गर्भाधानादि सोलह क्रियाओं के स्वतन्त्र मंत्र लिखे गये हैं। श्रावकों के सामाजिक जीवन, रीति-रिवाजों एवं धार्मिक क्रियाओं में काम आने वाले ये मंत्र आचार्य जिनसेन ने ही रचे थे, क्योंकि इससे पूर्व उनका क्या स्वरूप था, यह ज्ञात कर पाना कठिन है। जैन परम्परा के विद्यानुवाद पूर्व एवं चूलिकाओं में उल्लिखित प्राचीन मंत्रतंत्र और विद्याएँ तो प्राय: लुप्त हो गई। तद्विषयक जो साहित्य आज उपलब्ध हैं, वे तांत्रिक युग की देन माने जा सकते हैं। भारतीय इतिहास में एक ऐसा समय था जब चमत्कार को ही नमस्कार किया जाता था। उस काल में जैन परम्परा के पोषक भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। उन्होंने भी शक्तिधारक देवी-देवताओं (यक्ष-यक्षियों) की आराधना एवं सिद्धि द्वारा चमत्कार दिखलाये और साहित्य रचा। जिससे जैन धर्मावलम्बियों को एक सूत्र में बांधकर रखा जा सका। सम्प्रति मंत्र-तंत्र विद्या के साधकों का जैनों में अभाव होता जा रहा है। पुनः इस विद्या के विलुप्त होने का संकट बढ़ता जा रहा है। इसकी रक्षा एवं विकास करना हमारा (समाज का) पुनीत कर्तव्य है। सन्दर्भ : (क) समस्ता विद्या अष्टौ महानिमित्तानि तद्विषयो रज्जुराशिविधिः क्षेत्रं श्रेणी लोकप्रतिष्ठा संस्थानं समुद्घातश्च यत्र कथ्यते तद्विद्यानुवादम्। तत्राङगुष्ठप्रसेनादीनामल्पविद्यानां सप्तशतानि महारोहिण्यादीनां महाविद्यानां पंचशतानि। अन्तरिक्ष-भौमांग-स्वर-स्वप्न-लक्षण-व्यंजन-छिनानि अष्टौ महानिमित्तानि। तत्त्वार्थवार्तिक, अकलंकदेव, १/२०, पृ० ७६. (ख) विज्जाणुवादं णाम पुव्वं पण्हारसण्हं वत्थूणं १५ तिषिण सेयपाहुडाणं ३०० एग-कोडि-दस-लक्ख-पदेहि ११०,००००० अंगुष्ठप्रसेनादीनां अल्पविद्यानां सप्तशतानि रोहिण्यादीनां महाविद्यानां पंचशतानि अन्तरिक्षभौमांगस्वरस्वप्नलक्षणव्यंजनछिन्नान्यष्टौ महानिमित्तानि च कथयति। - घट्खण्डागम, वीरसेन, धवलाटीका पु० १/१/२, पृ० - १२२. (ग) अंगपण्णत्ति, शुभचन्द्र, २/१०१-१०३. (घ) गोम्मटसार (जीवकाण्ड), जी० त० प्रदी०गा० ३६५-६६ पृ० ६१०-११ (ज्ञानपीठ संस्करण) (ङ) पं० खूबचन्द्र जैन, गोम्मटसार जीवकाण्ड की बालबोधिनी टीका, गा० ५६४-६५, पृ० १३९ (रायचन्द्र शास्त्रमाला, द्वितीय संस्करण)
SR No.525061
Book TitleSramana 2007 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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