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________________ श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३ अप्रैल-सितम्बर २००७ बौद्ध एवं जैन दर्शन में व्याप्ति-विमर्श डॉ० राघवेन्द्र पाण्डेय व्याप्ति शब्द 'वि' और 'आप्ति' के योग से बना है जिसका अर्थ होता हैविशेष प्रकार से सम्बन्ध। दो वस्तुओं का सर्वदा नियत रूप से एक साथ रहना ही विशेष सम्बन्ध है।' दरबारी लाल कोठिया का भी मानना है कि तर्कशास्त्र में विशेष सम्बन्ध उन दो पदार्थों के नियत साहचर्य को कहा गया है जिनमें गम्यगमकभाव या साध्यसाधनभाव होता है। लिङ्ग-लिङ्गी या साधन-साध्य में गमक-गम्यभाव या साधन-साध्यभाव का प्रयोजक सम्बन्ध ही विशेष सम्बन्ध है। अनुमान की प्रक्रिया मूलत: जिन दो प्रमुख तत्त्वों पर आधारित है उनमें एक व्याप्ति है और दूसरा पक्षधर्मता। पक्षधर्मता का बोध होने पर भी व्याप्ति का ज्ञान होना आवश्यक है। बिना व्याप्ति ज्ञान के अनुमान का बोध असम्भव है। व्याप्ति सम्बन्ध अविच्छेद एवं अनिवार्य होता है। सामान्यतया व्यापकता को व्याप्ति कहते हैं और यह दो वस्तुओं के बीच अनिवार्य पारस्परिक सम्बन्ध का बोध कराता है। इनमें से एक व्यापक होता है और दूसरा व्याप्य होता है। जिसकी व्याप्ति होती है वह व्यापक और जिसमें व्याप्ति रहती है वह व्याप्य कहलाता है। अग्नि और धूम में अग्नि व्यापक है तथा धूम व्याप्य है। व्याप्य कभी भी व्यापक के बाहर नहीं रह सकता है, जबकि व्यापक के लिए ऐसा प्रतिबन्ध नहीं है। यथा- धूम अग्नि के अन्तर्गत है, किन्तु अग्नि धूम के अन्तर्गत नहीं है। व्याप्ति के लिए दो वस्तुओं का साहचर्य होना आवश्यक है लेकिन इस साहचर्य सम्बन्ध को नियत होना चाहिए। अनियत साहचर्य सम्बन्ध वास्तविक व्याप्ति सम्बन्ध नहीं हो सकता है। व्याप्ति सम्बन्ध में व्यतिक्रम या अनियमितता नहीं होनी चाहिए। इसलिए व्याप्ति सम्बन्ध को नियत साहचर्य सम्बन्ध या ऐकान्तिक सम्बन्ध या अव्यभिचरित सम्बन्ध कहा गया है। 'नियत-साहचर्य सम्बन्यः व्याप्तिः, ऐकान्तिक-सम्बन्धः व्याप्तिः, अव्यभिचरित सम्बन्धः व्याप्तिः।' जैन दर्शन में व्याप्ति सम्बन्ध को अविनाभाव के रूप में परिभाषित किया गया है। सिद्धसेन, विद्यानन्द, अकलङ्क आदि दार्शनिक साध्य एवं हेतु के अविनाभाव नियम को व्याप्ति * पूर्व शोध छात्र, दर्शन एवं धर्म विभाग, बी०एच०यू०, वाराणसी
SR No.525061
Book TitleSramana 2007 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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