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श्रमण, वर्ष ५८, अंक १/जनवरी-मार्च २००७
दार्शनिकों ने जहाँ एक ओर तर्क को स्वतंत्र प्रमाण माना वहीं तर्क के द्वारा व्याप्तिज्ञान को स्वीकार किया, जो जैन चिन्तकों द्वारा भारतीय तर्कशास्त्र में जोड़ी गई एक नई : कड़ी कही जा सकती है।
आगम के लिए जैन ग्रन्थों 'श्रुत' शब्द का भी प्रयोग मिलता है। अन्य दर्शनों में जिसे शब्द कहा गया है उसे जैन दार्शनिक 'आगम' शब्द से संज्ञयित करते हैं। आगम आप्तवचन को कहते हैं। 'प्रमाणनयतत्त्वालोक' में आप्तपुरुष के वचनादि से आविर्भूत अर्थज्ञान को आगमप्रमाण कहा गया है।१९ आप्तपुरुष दो प्रकार के माने गये हैं- लौकिक एवं लोकोत्तर।२० माता-पिता, गुरुजन आदि लौकिक आप्त हैं तथा तीर्थंकर या केवली लोकोत्तर आप्त माने गये हैं। संदर्भ:
1.
Scientific method pursues the road of systemetic doubt. It does not doubt all things, for this is clearly impossible. But it does question whatever lacks adequate evidence in its support. - Morris R. Cohen and Ernest Nagel, An Introduction to Logic and Scientific Method. Allied Publishers, New Delhi 1984, p. 394.
२. स्थानांगसूत्र, सम्पा०- मधुकर मुनि, आगम प्रकाशन समिति, व्यावर, १९८१,
४/३/५०४ ३. चउविहे णाते पण्णत्ते, तं जहा- आहरणे, आहरणतद्देसे, आहरणतद्दोसे,
उवण्णासोवणए। वहीं, ४/३/४९९ ४. छव्विहे विवादे पण्णते, तं जहा- ओसक्कइत्ता, उस्सक्कइत्ता, अणुलोमइत्ता,
पडिलोमइत्ता, भइत्ता, भेलइत्ता। वही, ६/६७ ५. स्थानांग, १०/९४ ६. सर्वार्थसिद्धि, १/१२, पृ०-७२ ७. न्यायावतार, ५ ८. तत्र हेतुग्रहणसम्बन्धस्मरणकारणकं साध्यविज्ञानं स्वार्थम् । प्रमाणनयतत्त्वालोक,
३/१० ९. न्यायावतार, १०
१०. दशवैकालिकनियुक्ति, गाथा ८९-१३७ ।