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________________ जैन एवं बौद्ध धर्मों में चतुर्विध संघों का परस्पर योगदान : ६१ भिक्षु किसी भिक्षुणी को सम्मान दे देता या अभिवादन कर लेता तो उसे दुक्कट दण्ड का भागी बनना पड़ता था । १४ इस विषय में अनेक नियम- उपनियम भी बनाए गए जिससे संघ अपवित्र व दूषित न हो। इसमें सन्देह नहीं कि भिक्षु संघ का कार्य बहुत बड़ा था, लेकिन बौद्ध साहित्य में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जिनसे यह पता चलता है कि भिक्षुणियों व उपासिकाओं ने भी संघ की उन्नति में पर्याप्त भूमिका निभाई है। १५ इस प्रकार चतुर्विध संघ में श्रमणी संघ का महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि आचार-विचार के पालन, धर्म के संचालन, कला और संस्कृति को दिशा प्रदान करने में चतुर्विध संघ में श्रमणी संघ की भूमिका महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। दोनों ही धर्मों में भिक्षु भिक्षुणी के मध्य सम्बन्ध अत्यन्त मधुर थे। दोनों धर्मों में चतुर्विध संघों में श्रमण- श्रमणी और श्रावक-श्राविका के बीच जो मधुर सम्बन्ध थे उनका एक ही उद्देश्य था- एक ऐसे संघ का निर्माण जो किसी एक वर्ग या एक धर्म का नहीं, वरन् पूरे मानव समाज का हो। संघ के इसी लक्ष्य की पूर्ति हेतु श्रमण- श्रमणी और श्रावकश्राविका एक-दूसरे के पूरक और सहयोगी बनें। सन्दर्भ : १. धम्मपद, (ब्राह्मणवग्ग), वासेट्ठ- सुत्त (सुत्तनिपात) २. उपाध्याय, भरत सिंह, बौद्ध दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शन, भाग - १, पृ० २१५ ३. गोविन्दचन्द्र पाण्डेय, बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, पृ०- १३७-१३८ ४. वही, पृ० - १४० ५. महावग्ग, पृ०- ७३ ८२ ६. गोविन्दचन्द्र पाण्डेय, बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, पृ० १५३ ७. दशवैकालिक, ५/२/१ ८. वही १ / २ ४ ९. गोविन्दचन्द्र पाण्डेय, बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, पृ० १६५ १०. महावंस, १० / ९५; ३३ / ४३ ११. A List of Brahmi Inscription, Berlin, H. Luders, 3 12. Ibid, p. 102 १३. चुल्लवग्ग, पृ०- ३७८ १४. वही १५. कौशम्बी, धर्मानन्द, भगवान बुद्ध : जीवन और दर्शन, १५८ *
SR No.525060
Book TitleSramana 2007 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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