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________________ ५० : श्रमण, वर्ष ५८, अंक १/जनवरी-मार्च २००७ करने वाले प्राणी का विरोध करना भी अहिंसा है। बुद्ध की स्पष्ट मान्यता है कि अहिंसावादी व्यक्ति ही धार्मिक होता है और अहिंसक प्राणी ही मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है।२३ कहा गया है - The followers of Non-violence neither cause pain to some one nor provoke anybody to do so. चार आर्य सत्यों के पीछे भी अहिंसा के भाव निहित हैं। बुद्ध द्वारा प्रतिपादित मध्यम-प्रतिपदा अहिंसा के विचार का आधार है। बद्ध का विश्वास था कि यथार्थ अहिंसा धर्म का पालन हिंसा निवारण द्वारा उतना संभव नहीं है, जितना कि प्रेम और क्षमा के द्वारा संभव है। बौद्ध चिन्तन में अहिंसा की अपेक्षा मैत्री-भावना को उच्चतर माना गया है। कहा गया है-मैत्री भावना में जो शक्ति है वह अन्य किसी में नहीं है। जिस व्यक्ति में मैत्री भावना चैतन्य हो, जगी हो, उसे किसी भी स्थान पर और किसी भी प्राणी से डर नहीं होता। इसलिए हे भिक्षओं! तुम्हे ऐसा सीखना चाहिए।२४ बौद्ध साहित्य में जो अहिंसा सम्बन्धी उल्लेख मिलते हैं उससे यही स्पष्ट होता है-बुद्ध हिंसा की आग को मैत्री एवं करुणा से बुझाना चाहते हैं। किन्तु यहाँ पर यह उल्लेख करना अन्यथा न होगा कि कालान्तर में बौद्ध धर्म के अनुयायी बुद्ध के अहिंसामूलक निर्देशों को संरक्षित न रख सके और जिस हिंसा के प्रतिरोध स्वरूप उसका उद्भव हुआ था, उसका परित्याग कर दिया। इस्लाम धर्म में अहिंसा बिस्मिल्लाह रहिम्मनुरहीम, अर्थात् ऐ खुदा! सभी जीवों पर रहम कर। ये वचन 'कुरानशरीफ' के प्रारम्भ में आये हैं। यद्यपि इस्लाम धर्म में अहिंसा को कहीं परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन यत्र-तत्र कुछ ऐसे तथ्य मिलते हैं जो अहिंसा को इंगित करते हैं, जैसे- गाली न देना, क्रोध न करना, लोभवृत्ति का त्याग करना, चुगली न खाना, खून-खराबा से दूर रहना, रिश्वत नहीं लेना, बेईमानी न करना, चापलूसी न करना, मदिरापान न करना, हिंसा न करना, असत्य न बोलना, युद्ध न करना आदि। इसी प्रकार दान, स्वच्छता, ब्रह्मचर्य, क्षमा, मैत्री, कृतज्ञता, न्याय, दया, उदारता, प्रेम आदि को ग्रहण कर सत् पथ पर चलने के लिए प्रेरित किया गया है।२५ इन उद्धरणों से ऐसा प्रतीत होता है कि इस्लाम धर्म भी कुछ हद तक अहिंसा की दृष्टि को लेकर चलता है, परन्तु इस्लाम में जंगली पशुओं की हत्या करने की छूट दी गई है। इस दृष्टि से इस्लाम परम्परा का अहिंसा सिद्धान्त विरोधाभास से ग्रसित है। ईसाई धर्म में अहिंसा ईसाई धर्म में मुख्य रूप से प्रेम, करुणा और सेवा की भावना पर विशेष बल दिया गया है। प्रभु ईसा ने कहा है- व्यभिचार मत करो, हिंसा मत करो, चोरी
SR No.525060
Book TitleSramana 2007 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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