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________________ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक १ / जनवरी-मार्च २००७ ११. वृद्ध - वृद्धावस्था में संन्यास ग्रहण करने वाले । १२. श्रावक धर्मशास्त्र श्रवण करनेवाले ब्राह्मण । १३. धर्मचिन्तक - सतत् धर्मशास्त्र का अध्ययन करनेवाले । १४. रक्तपट लाल रंग के वस्त्र धारण करने वाले । 'औपपातिकसूत्र' के अनुसार परिव्राजकों के स्वरूप इस प्रकार हैंपुरुष - प्रकृति आदि २५ तत्त्वों में श्रद्धाशील रहनेवाले। १. सांख्य २. योगी - हठयोग के अनुष्ठाता । ३. कापिल - महर्षि कपिल के अनुयायी । ४. भार्गव - भृगुऋषि के अनुयायी । ५. हंस - जो गुफाओं और आश्रमों में रहते थे तथा भिक्षामात्र के लिए गाँव में जाते थे। ६. परमहंस - जो नदी तीर या संगम प्रदेश में रहते थे और अन्तिम समय में वस्त्र (चीर), कोपीन, कुश आदि का त्याग कर प्राणों का विसर्जन करते थे। ७. बहुद जो गाँव में एक रात्रि और शहर में पाँच रात्रि रहते थे। ८. कुटीचर - जो घर में रहते हुए कषायों का त्याग करने का प्रयत्न करते हों, वे कुटीचर कहलाते हैं। साधु ९. कृष्ण परिव्राजक - नारायण के परम भक्त कृष्ण परिव्राजक कहलाते हैं। इन परिव्राजकों के अतिरिक्त चार प्रकार के और परिव्राजकों के उल्लेख ३६ मिलते हैं तापस - - - - १. आत्मोत्कर्षक- अपनी गरिमा या बड़प्पन का बखान करने वाले । २. परपरिवादक - दूसरों की निन्दा करने वाले । ३. भूतिकर्मिक - भस्म आदि के द्वारा रोग आदि को शान्त करने वाला। ४. कौतुक कारक - भाग्योदय सम्बन्धी चमत्कारिक बातें करने वाला। 'तवो से अत्थि तावसो' अर्थात् जो तप से युक्त है वह तापस है। तापस का सामान्य अर्थ तप करने वाला होता है। लेकिन पंचविंश ब्राह्मण में सर्पयज्ञ में दत्त होता पुरोहित के नाम के सन्दर्भ में तापस शब्द का प्रयोग हुआ है । वैदिक साहित्य में तापस का उल्लेख उपनिषदों से पूर्व नहीं मिलता है। जैन साहित्य में तापस का
SR No.525060
Book TitleSramana 2007 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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