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________________ आगमों में अनगार के प्रकार : परिव्राजक, तापस और आजीवक ... : ३३ तत्थ खलु इमे अट्ठ खत्तियपरिव्वाया भवंति, तंजहासीलई ससिहारे (य), नग्गई भग्गई ति य। विदेहे रायाराया, राया रामे बलेति ये।। ब्राह्मण परिव्राजक के अन्तर्गत कर्ण, करकण्ड, अम्बड, पाराशर, कृष्ण, द्वैपायन, देवगुप्त तथा नारद के नाम उल्लेखित हैं तथा क्षत्रिय परिव्राजक के अन्तर्गत शीलशी, शशिधर, नमक, भग्नक, विदेह, राजराज, राजराम तथा बल के नाम गिनाये गये हैं। 'व्याख्याप्रज्ञप्ति में १४ प्रकार के आराधक-विराधक अनगार परिव्राजकों के अन्तर्गत जो नाम उपलब्ध होते हैं, वे इस प्रकार हैं- असंयत भव्यद्रव्य देव, अविराधित संयमी, विराधित संयमी, अविराधित संयमासंयमी, असंज्ञी जीव, तापस, कान्दर्पिक, चरक परिव्राजक, किल्विषिक, तिर्यञ्च, आजीवक, आभियोगिक, दर्शनभ्रष्ट लिंगी आदि। 'ज्ञाताधर्मकथांग में उपलब्ध परिव्राजकों के नाम हैं- गौतम, गोव्रतिक, गृहिधर्म, धर्मचिन्तक, अविरूद्ध, विरूद्ध, वृद्ध, श्रावक, रक्तपट, चरक, चीरिक, चर्मखंडिक, भिच्छंड, पण्डुरंग आदि। इसी प्रकार 'औपपातिक' १° में आठ प्रकार के परिव्राजकों के नाम उपलब्ध होते हैं- सांख्य, योगी, कापिल, भार्गव, हंस, परमहंस, बहुदक, कुटीचर आदि। 'औपपातिक' में उपलब्ध तापसों के नाम हैं- होतृक, पोतृक, कौतृक, उन्मज्जक, सम्मज्जक, निमज्जक, संप्रक्षालक, दक्षिणकूलक, उत्तरकूलक, कूलध्यामक, मृगलुब्धक, हस्तितापस, उद्धण्डक, दिशाप्रेक्षी, बिलवासी, वेलवासी, जलवासी, वृक्षमूलक, अम्बुभक्षी, शैलाबभक्षी, मूलाहारी, कन्दाहारी, त्वचाहारी, पत्राहारी, पुष्पाहारी, बीजाहारी आदि। इनके अतिरिक्त आत्मोत्कर्षी, परपरिवादी, भूतिकर्मिक, कौतुककारक आदि परिव्राजकों के नाम उपलब्ध होते हैं। सात आजीवकों के नाम हैं- दुघरंतिया, तिघरंतिया, सतघरंतिया, उप्पलवेंटिया, घरसमुदाणिय, विज्जुअंतरिया और उट्टियसमण। __ आगमों में वर्णित परिव्राजकों, तापसों और आजीवकों के उपर्युक्त नामों व स्वरूपों के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि आगमों में जो तत्सम्बन्धी उल्लेख हैं वे न केवल जैन दृष्टिकोण से विवेचित हैं बल्कि तत्कालीन समाज में विभिन्न धार्मिक आम्नाय में व्याप्त परिव्राजकों, तापसों व आजीवकों के सन्दर्भ में हैं। साथ ही यह भी स्पष्ट होता है कि परिव्राजकों, तापसों व आजीवकों का जो विभाजन किया गया है उनका मुख्य आधार आचार, आहार, वस्त्रधारण, भ्रमण और निवास-स्थान रहा है। प्रस्तुत-पत्र में इन्हीं बिन्दुओं को आधार बनाकर परिव्राजकों, तापसों और आजीवकों के स्वरूप को प्रस्तुत करने का प्रयास है।
SR No.525060
Book TitleSramana 2007 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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