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________________ १६४ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक १/जनवरी-मार्च २००७ के०ई० देवनाथन, प्रो० डी० प्रह्लादाचार, डॉ० प्रबल कुमार सेन, गोस्वामी श्री श्याम मनोहर, डॉ० सुनन्दा शास्त्री एवं डॉ० वी० एम० जोशी के शोध-पत्र का अंकन है। शोध-पत्र हिन्दी, संस्कृत एवं अंग्रेजी भाषा में पठित है। सभी शोध-पत्र वाल्लभ वेदान्त की सारगर्भिता को प्रस्तुत करते हैं। निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि यह ग्रन्थ वल्लभ वेदान्ताभिमत कार्यकारणभाव चर्चा ज्ञानपिपासु सुधी पाठकों के लिए उपयुक्त है। आशा है धर्म-दर्शन के जिज्ञासु पाठक एवं शोधार्थी इसका लाभ अवश्य उठाएँगे। यह पठनीय एवं संग्रहणीय विशेषताओं से युक्त ग्रन्थ है। - डॉ० राघवेन्द्र पाण्डेय ७. जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-१, लेखिका- साध्वी सौम्यगणा श्री, सम्पा० - डॉ० सागरमल जैन, प्रका० - प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर, मध्य प्रदेश, संस्करण-२००६, आकार - डिमाई, पृ० - ६७२, मूल्य- १५१/- किसी भी धर्म-दर्शन का अपना स्वतंत्र विधि-विधान होता है। इन्हीं विधिविधानों के माध्यम से व्यक्ति अपनी धार्मिक साधना के पथ पर चलकर चरम लक्ष्य को प्राप्त करता है। जनकल्याण की कामना करने वाले हमारे ऋषि-मुनियों ने दानशील, तप आदि अनेक विधान बनाये हैं जिनसे मानव मात्र का कल्याण हो सके। इसी क्रम में जैन विधि-विधानों के इतिहास और वैविध्यपूर्ण जानकारियों के साथ सुधी पाठक को अपने योग्य आराधनाओं के विषय में सहज एवं सरल भाषा में जानकारी उपलब्ध कराने का सफल प्रयास साध्वी सौम्यगुणा श्री जी ने किया है। जैन विद्या के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान डॉ० सागरमल जैन के कुशल सम्पादकत्व में यह ग्रन्थ कुछ गिने चुने विशिष्ट ग्रन्थों की श्रेणी में आ जाता है। विद्वान् लेखिका ने अपनी बुद्धिमत्ता का सदुपयोग करते हुए इस ग्रन्थ को वह सब कुछ दिया है जो अन्यत्र दर्लभ है। यह ग्रन्थ कुल १३ अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय जैन विधि-विधान के उद्भव एवं विकास से सम्बन्धित है। इसमें लेखिका ने मनुष्य के व्यावहारिक जीवन से सम्बन्धित नियमों के उद्भव एवं विकास को विभिन्न दृष्टियों से विवेचित करने का प्रयास किया है। द्वितीय अध्याय में श्रावकाचार सम्बन्धी विधि-विधानपरक साहित्य सूची के अन्तर्गत प्रारम्भ में ७४ साहित्य की सूची दी गई है, तत्पश्चात् उनका संक्षिप्त विवेचन किया गया है। तृतीय अध्याय साध्वाचार सम्बन्धी विधि-विधानपरक साहित्य से सम्बन्धित है। इसमें भी प्रारम्भ में २७ साहित्य की सूची एवं तत्पश्चात् उनपर संक्षिप्त प्रकाश डाला गया है। चतुर्थ अध्याय में षडावश्यक (प्रतिक्रमण) सम्बन्धी विधि-विधानपरक २१ साहित्य की सूची और उनके बारे में आवश्यकतानुरूप
SR No.525060
Book TitleSramana 2007 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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