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________________ १६२ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक १/जनवरी-मार्च २००७ साथ ही डॉ० अच्युतानन्द दास, डॉ० रघुनाथ घोष, डॉ० वाई०एस० शास्त्री, डॉ० एन०आर०कण्णन, डॉ० के०ई० देवनाथन, प्रो० डी० प्रह्लादाचार, डॉ० बलिराम शुक्ल, डॉ० शशिनाथ झा, डॉ० के०ई० गोविन्दन, डॉ० विन्देश्वरी प्रसाद मिश्र, डॉ० एन०एम० कन्सारा, डॉ० सुनन्दा वाई० शास्त्री, डॉ० गोविन्द झा, डॉ० प्रदीप गोखले, डॉ० कीर्त्यानन्द झा एवं डा. कृष्णानन्द झा के शोध-पत्रों का संकलन है। शोध-पत्र हिन्दी, अंग्रेजी एवं संस्कृत भाषाओं में है। प्रत्येक शोध-पत्र वाचन के उपरान्त उस पर की गई चर्चा का भी उल्लेख इस ग्रन्थ में हुआ है। अत: यह पुस्तक दर्शनशास्त्र के विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों के लिए अवश्य ही पठनीय एवं संग्रहणीय है। आशा है ज्ञानपिपासु विद्वत्जन इस पुस्तक का अवश्य लाभ उठाएंगे। डॉ० राघवेन्द्र पाण्डेय ५. वाल्लभ वेदान्त (निबन्ध संग्रह), लेखक - गोस्वामी श्री श्याम मनोहर जी, सम्पा० - गोस्वामी शरद, प्रका० - श्री वल्लभाचार्य ट्रस्ट, कँसारा बाजार, माण्डवी, कच्छ, गुजरात ३७०४६५, संस्करण - प्रथम (वि०स० २०६३), आकार - डिमाई, पृ० - ५४५. .. प्रस्तुत ग्रन्थ गोस्वामी श्री श्याम मनोहर जी द्वारा धर्म-दर्शन विषयक निबन्धों का संग्रहित रूप है। इसके दर्शन खण्ड में आठ एवं धर्म खण्ड में छः लेख हैं। सभी लेख धर्म एवं दर्शन सम्बन्धी सिद्धान्तों की गूढ़ शास्त्रीय चर्चा को समेटे हुए हैं। दर्शन खण्ड का प्रथम लेख "भारतीय दर्शन के विकास में प्रस्तावित विभिन्न योजनाबद्धताओं की रूपरेखा' (इन चौखटों में वाल्लभ दर्शन का स्थान) है। इस लेख के माध्यम से विद्वान् लेखक ने भारतीय दर्शन की विभिन्न विधाओं (आस्तिक, नास्तिक) के साथ-साथ तर्कशास्त्र में भी वल्लभ दर्शन को दिखाने का प्रयास किया है। इसके साथ ही वाल्लभ वेदान्त के अनुसार भाषा का स्वरूप और कार्य कलाप, चक्षु का चाक्षुषविषय देश में प्राप्यप्रकाशकारित्व, तमस के विभिन्न स्वरूप और उनकी अनुभूतियों के बारे में कुछ पुरःस्फूर्तिक विचार (वाल्लभ दृष्टिकोण से), ख्यातिवाद की चर्चा में कुछ पुरःस्फूर्तिक विचार बिन्दु, सत्य के कतिपय अनूठे आयाम, अन्त:करण का स्वभाव और कार्यकलाप, कार्यकारणभाव मीमांसा आदि लेख उत्कृष्ट बन पड़े है। धर्म खण्ड में प्रथम लेख शुद्धाद्वैतवाद और लीलावाद के सन्दर्भ में व्यक्ति-स्वातन्त्र्य की मीमांसा है, जिसमें लेखक ने शुद्धाद्वैतवाद पर स्वयं पुरुषार्थहीनता, अकर्मण्यता तथा ज्ञानेच्छाप्रयत्न पारतंत्र्य आदि आक्षिप्त दोषों का निरसन किया है। इस लेख में लेखक ने आक्षेपों का निरसन करते हुए व्यक्ति-स्वातन्त्र्य के स्वरूप तथा उसकी उपयोगिता आदि का विस्तृत विवेचन किया है। अन्य लेखों में धर्म की
SR No.525060
Book TitleSramana 2007 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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