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________________ साहित्य सत्कार : १५९ किया गया है। इस ग्रन्थ से पूर्व लिखे जितने भी ग्रन्थ हैं उनमें इन संस्कारों सम्बन्धी विधि-विधानों का विस्तार से अध्ययन नहीं किया गया है, अतः इस दृष्टि से प्रस्तुत ग्रन्थ की महत्ता सिद्ध होती है, किन्तु भाषा की दुरूहता के कारण यह ग्रन्थ अपनी मूल भाषा में समाज में लोकप्रिय नहीं हो पाया। साध्वी मोक्षरत्ना जी ने इस विशालकाय ग्रन्थ का हिन्दी भाषा में अनुवाद कर एक महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। इसके अनुवाद का कार्य भी इतना सहज और सरल नहीं था, क्योंकि यह ग्रन्थ भाषा की दृष्टि से क्लिष्ट तो था ही, साथ ही इसके मूल में अशुद्धता भी पर्याप्त थी, अतः इन सबको ध्यान में रखते हुए साध्वी मोक्षरत्ना जी ने ग्रन्थ के अनुवाद का कार्य जिस सफलतापूर्वक सम्पन्न किया इसके लिये वे निश्चय ही बधाई की पात्र हैं। वे आगे भी इस प्रकार का प्रयास करती रहेंगी, ऐसी आशा है । ग्रन्थ की बाह्याकृति सुन्दर और आकर्षक तथा मुद्रण स्पष्ट है। डॉ० शारदा सिंह २. आचार दिनकर - चतुर्थ खण्ड, प्रायश्चित्त, आवश्यक, तप एवं पदारोपण विधि, लेखक- आचार्य, वर्धमानसूरि, अनुवादक - साध्वी मोक्षरत्नाश्री जी, सम्पा०- प्रो० ० सागरमल जैन, प्रकाशक- शाजापुर ( म०प्र०), प्रथम संस्करणसितम्बर - २००५, मूल्य २०० रूपये, पृष्ठ ४२२, साईज- डिमाई | प्रस्तुत पुस्तक आचार्य वर्धमानसूरिकृत ग्रन्थ 'आचार दिनकर' का चतुर्थ खण्ड है। इसके प्रथम खण्ड में गृहस्थों के लिये सोलह संस्कार, द्वितीय खण्ड में जैन मुनि जीवन के विधि-विधानों का तथा तृतीय खण्ड में प्रतिष्ठा विधि, शान्तिक कर्म, पौष्टिक कर्म एवं बलि- विधान, जो मूलतः कर्मकाण्डपरक हैं, का उल्लेख है तथा 'आचार दिनकर' के चतुर्थ अर्थात् इस खण्ड में प्रायश्चित्त-विधि, षडावश्यकविधि, तप-विधि और पदारोपण - विधि इन चारों का विधिवत् उल्लेख किया गया है। 'आचार दिनकर' के इस खण्ड में मुनि जीवन और गृहस्थ जीवन दोनों से सम्बन्धित संस्कारों का उल्लेख किया गया है। इससे पहले किसी भी ग्रन्थ में तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था की दृष्टि से प्रामाणिक ग्रन्थ नहीं लिखा गया था। अतः हम कह सकते हैं कि 'आचार दिनकर' एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमें जैन परम्परा पर हिन्दू परम्परा के संस्कार सम्बन्धी विधि-विधानों के प्रभाव को मानते हुए तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था में प्रचलित विधि-विधानों का व्यवस्थित अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। 'आचार दिनकर' के इस चतुर्थ खण्ड में प्रायश्चित - विधि, तप-विधि, आवश्यकविधि तथा पदारोपण - विधि को आगमों की अपेक्षा अधिक विकसित रूप में विवेचित किया गया है। तप - विधि के अन्तर्गत आगमों में वर्णित तपों के उल्लेख के साथ
SR No.525060
Book TitleSramana 2007 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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