SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीस वर्ष और तीन वर्ष : ५. ऋषि - सिद्धि के उपयोग १. गोशालक तापस की उष्ण तेजोलेश्या को शांत करने के लिये शीत तेजोलेश्या का विकिरण । २. क्रोधवश गोशालक द्वारा उन पर प्रक्षेपित उष्ण तेजोलेश्या का गोशालक पर ही प्रत्यावर्तन जिससे वह अशक्त हो गया। पूर्वोक्तियां १. गोशालक को विशिष्ट भोजन की पूर्वोक्त। २. गोशालक और अन्य भक्तों के भावी जीवन के विषय में अनेक पूर्वोक्तियाँ। ३. अनेक प्रकरणों में भक्तों के पूर्वजन्म की उक्तियाँ। ४. तिल के पौधे का (उखाड़ने के बाद भी ) पुनः अंकुरित होने एवं पौधे का रूप लेने की पूर्वोक्ति। ५. सूर्याभदेव, अभयकुमार, मेघकुमार, वारिषेण तथा श्रेणिक आदि के पूर्वजन्म की चर्चा तथा उनके उत्तर जन्म की पूर्वोक्तियाँ। इन सब घटनाओं के कारण उनके जीवन चरित में व्यक्तिगत चमत्कारिकता का अंश जुड़ गया। इनका वर्णन 'कल्पसूत्र' एवं 'आचारांग' आदि ग्रंथों में किया गया है। यदि पौराणिक परम्परा पर ध्यान न दें, तो महावीर एक सामान्य मानव थे, उनके जीवन में सभी प्रकार की सांसारिक सुख-दुःखपूर्ण घटनायें घटीं। उन्होंने अपने ज्ञान और अनुभव से स्व-पर-सुख संवर्धन के लिये साधना की राह ली, अनेक कष्टों का सामना किया एवं परम अंतर्दृष्टि, रिद्धि-सिद्धि एवं सर्वज्ञता प्राप्त की और वे जन्मजात मानव से परामानव बनें। उन्होंने सभी को परामानव बनने का मार्ग बताया। अनेक जैन ग्रन्थों में महावीर के लिये निम्नलिखित अनेक उपमायें प्राप्त होती हैं, जिनसे उनके व्यक्तित्व, बल तथा आत्मीय पवित्रता, निस्संगता आदि गुणों की गरिमा का भान होता है १. चलता-फिरता विश्वविद्यालय, २. पारसमणि, ३. जादूगर, ४. हाथी, ५. बैल, ६. सिंह, ७. सुमेरु, ८. पृथ्वी, ९. शंख १०. कमल - पत्र, ११. वायु, १२. आकाश, १३. शारदीय जल आदि ।
SR No.525060
Book TitleSramana 2007 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy