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जैन दर्शन व शैव सिद्धान्त दर्शन में प्रतिपादित मोक्ष : ८७
है, अपितु सम्मिलित रूप से ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। जैन दर्शन के अनुसार केवल एक मार्ग का वरण करके हम मुक्ति नहीं पा सकते जब तक कि हम अपनी चेतना को पूर्ण विकसित न कर लें। उनके अनुसार मानवीय चेतना के तीन पक्ष होते हैं, ज्ञान, भाव व संकल्प और जब तक इन तीनों का पूर्ण विकास नही होगा मोक्ष पाने का प्रयास एकांकी ही होगा। अतः इसके लिये आवश्यक है कि इन तीनों पक्षों के विकास के लिये त्रिविध साधना मार्ग (सम्यक्-दर्शन, सम्यक् - ज्ञान, सम्यक् चारित्र) का पालन किया जाय । यद्यपि दर्शन, ज्ञान और चारित्र की पूर्वापरता को लेकर विद्वानों में काफी मतभेद है किन्तु ज्यादातर विद्वानों ने दर्शन को ज्ञान से पहले प्राथमिकता दी है। ज्ञान बिना दर्शन के नहीं हो सकता । चारित्र की अपेक्षा ज्ञान को प्राथमिकता दी गई है क्योंकि मुक्ति का आकांक्षी आध्यात्मिक पथ का पथिक, बिना ज्ञान और श्रद्धा के कैसे आगे बढ़ सकता है।
शैव सिद्धान्ती भी मानते हैं कि मोक्ष मार्गों - क्रमशः चर्या, क्रिया, योग और ज्ञान इन सभी का अनुसरण आवश्यक है। कहने का तात्पर्य है कि मुक्ति एकाएक नहीं प्राप्त हो जाती वरन् क्रमशः प्राप्त होती है। प्रथम मार्ग का अनुसरण करने से पद मुक्ति अथवा आंशिक मुक्ति और तत्पश्चात् पूर्ण मुक्ति प्राप्त होती है। "
यहां हम देखते हैं कि दोनो ही दर्शनों में प्रथम पद मुक्ति तत्पश्चात् पूर्णमुक्ति की प्राप्ति का विधान है। साधक द्वारा मोक्षमार्ग का क्रमशः अनुसरण करने से उसके मल आदि निवृत्त होते हैं और धीरे-धीरे साधक मोक्ष तक पहुँच जाता है और मुक्ति प्राप्त करता है। इन दोनों दर्शनों में अन्तर है तो इतना कि जैन दर्शन चारित्र की अपेक्षा ज्ञान को अधिक महत्त्व देता है। शैव सिद्धान्त में अन्य सभी मार्गों का अनुसरण करने के पश्चात् ज्ञान मार्ग की साधना की जाती है। चूंकि शैव सिद्धान्त शिव पर आधारित दर्शन है अतः ऐसा नहीं हो सकता कि कर्म में भक्ति का अभाव हो अथवा ज्ञान में भक्ति का अभाव हो, उनके अनुसार भक्ति सभी मार्गों के मूल में है। यहां तक कि मुक्ति की अवस्था में भी भक्ति अपरिहार्य है । यद्यपि मुक्त हुए जीव के कर्म अनासक्त भाव से किये गये होते हैं अतः वह बन्धनकारी नहीं होते। दोनों ही दर्शनों के विचारों में साम्यता दिखाई देती है।
इन तीनों मार्गों द्वारा मोक्ष की उपलब्धि के लिये मनुष्य जिन सोपानों का आरोहण करते हुए आत्म-विकास के पथ पर आगे बढ़ता है उसे जैन दर्शन
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