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________________ जैन चिन्तन में मन की अवधारणा : ७७ · हैं। आगे वह उस बोध को ज्ञान के रूप में धारण कर लेता है जिसे धारणा कहते हैं। मन को यह बोध हो जाता है कि उसे अमुक वस्तु जो दिखाई दे रही है अथवा ध्वनि जो सुनाई दे रही है, वह अमुक वस्तु है। ये सभी बोध मन के द्वारा ही होते हैं। जब किसी की स्मृति होती है तो उसमें मन की ही क्रियाशीलता देखी जाती है, क्योंकि जिस व्यक्ति या वस्तु की याद आ रही है उसके सम्बन्ध में जो बोध हुआ था वह भूतकाल में हुआ था। उस व्यक्ति या वस्तु को इन्द्रिय ने देखा था, समझा था, किन्तु वह व्यक्ति या वस्तु सामने नहीं है फिर भी उसका बोध हमें हो रहा है। क्योंकि मन उसे हमारे सामने ला रहा है। तर्क और अनुमान में कारण के आधार पर किसी तर्क को प्रमाणित किया जाता है। उसमें कारण से साध्य को सम्बन्धित करके हमें ज्ञान दिलाने वाला मन ही होता है। इसी तरह मन की चिन्तन - प्रणाली में अनेक चीजें आती हैं जिनका बोध व्यक्ति को होता है। बल्कि यों कहा जाए कि इन्द्रियों से प्राप्त सामग्रियों को ज्ञान रूप में प्रस्तुत करना मन का ही काम है। इसीलिए पाश्चात्य मनोविज्ञान में भी यह माना जाता है कि इन्द्रियों से मात्र संवेदना प्राप्त होती है। वह संवेदना जब मन तक पहुँचती है तब उसे * प्रत्यक्ष का रूप या स्तर मिलता है । यद्यपि न्याय दर्शन में यह माना जाता है कि इन्द्रियों से प्राप्त सामग्रियां मात्र मन तक पहुँचकर ही ज्ञान का रूप धारण नहीं करती हैं, बल्कि मन उन्हें आत्मा तक ले जाता है तब वे ज्ञान का रूप धारण करती हैं। मन का विषय : अर्थ- बोध मन अर्थ का बोध प्राप्त करता है । इन्द्रियाँ किसी वस्तु को देखती है, सुनती हैं, सूँघती हैं, स्पर्शन करती हैं, उसका स्वाद ग्रहण करती हैं । किन्तु उनसे क्या अर्थ निकलता है? उसे समझने का काम मन करता है । उदाहरणस्वरूप राम नाम का व्यक्ति सामने आया। आँखों ने उसे देखा, किन्तु राम एक आदमी है, पशु नहीं है, वनस्पति नहीं है इस बात को मन ही समझता है। कोई व्यक्ति गीत गा रहा है, उसकी आवाज अन्य लोगों के कानों द्वारा ग्रहण हो रही है। कान सिर्फ शब्द ग्रहण कर रहा है। गीत के शब्द धार्मिक हैं या शृंगारिक हैं उसे मन समझता है। इसलिए मन का विषय अर्थबोध माना गया है। मन की सत्ता मन की सत्ता से अभिप्राय है - मन है । किन्तु कैसे यह जाना जा सकता है कि मन की सत्ता है। इस सम्बन्ध में सन्मतितर्क में बताया गया है कि निम्नलिखित बोधों से यह संकेत मिलता है या प्रमाणित होता है कि मन का अस्तित्व है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525059
Book TitleSramana 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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