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________________ ५४ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक ३-४ / जुलाई-दिसम्बर २००६ कर सकता। अत: जगत् का कर्ता कोई सर्वशक्तिमान तत्त्व ही हो सकता है और वह कोई दूसरा नहीं है, बल्कि वह ईश्वर ही है। ईश्वर के कर्तृत्व को न मानते हुए दो तर्क दिए गए हैंक. ईश्वर यदि इस जगत् का सृष्टिकर्ता है और यदि सबका कोई कर्ता अवश्य होता है तो ईश्वर का सृष्टिकर्ता कौन है? कहा जा सकता है कि ईश्वर का सृष्टिकर्ता या निमित्त कारण कोई दूसरा ईश्वर है, फिर वही प्रश्न दूसरे ईश्वर के साथ भी उपस्थित होता है और इस क्रम में तीसरा, चौथा, पाँचवाँ ईश्वर आता जायेगा। जिसके कारण कोई अवस्था या स्थिरता नहीं प्राप्त होगी और उससे अनवस्था दोष लागू हो जायेगा। दर्शन के क्षेत्र में अनवस्था दोष तथा अनोन्याश्रय दोष ऐसे होते हैं जो जिस किसी सिद्धान्त पर लागू हो जाते हैं उसे खण्डित कर देते हैं। अत: यह कहना कि ईश्वर जगत् का कर्ता है, खण्डित हो जाता है। ख. सामान्यत: हम लोग यह देखते हैं कि बढ़ई किसी स्थान पर लकड़ी से कुर्सी बना रहा है। चर्मकार किसी स्थान पर चमड़ा से जूता बना रहा है। लेकिन ऐसा किसी ने नहीं देखा कि अमुक स्थान पर अमुक सामग्री से ईश्वर जगत् की रचना कर रहा है। यहाँ पर तर्क का आधार उसे दिया जा रहा है जो सबकी नजरों के सामने है। परन्तु प्रमाणित उसे किया जा रहा है जिसे कभी किसी ने नहीं देखा। अत: यह भी बहुत बड़ा दोष है, जिससे ईश्वर का कर्तृत्व खण्डित होता है। २. ईश्वर एक नहीं है:५- इस लक्षण को प्रमाणित करने के लिए ईश्वरवादियों ने यह तर्क दिया है कि जिस कार्य में एकता तथा क्रमबद्धता होती है, उसका कर्ता एक होता है। अनेक कर्ताओं के होने पर कार्य में न तो एकता होती है और न क्रमबद्धता ही। जगत् में क्योंकि क्रमबद्धता और एकता देखी जाती है इसलिए इसका कर्ता एक है अर्थात् ईश्वर एक है। ___ आचार्य हेमचन्द्र ने इस तर्क का खण्डन करते हुए कहा है कि अनेक कर्ताओं के होते हुए भी कार्य में एकता और क्रमबद्धता होती है। जैसे- मधुमक्खी का छत्ता। अनेक मधुमक्खियां मिलकर अपने छत्ते का निर्माण करती हैं तथा व्यवस्थित ढंग से उसमें मधु संचय करती हैं। उसी तरह अनेक चीटियां पंक्तिबद्ध होकर के चलती हैं। अपने स्थान पर खाने की वस्तुएं एकत्रित करती हैं। मधुमक्खियों में तथा चीटियों के कार्यों में निश्चित रूप से एकता तथा क्रमबद्धता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525059
Book TitleSramana 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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