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________________ ३८ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक ३-४ / जुलाई-दिसम्बर २००६ २. धर्म का आधारभूत अथवा मान्य ग्रंथ कौन-सा? हिन्दू-धर्म यह नाम चल रहा है। बीसवीं शताब्दी के लेखकों और वक्ताओं ने इसका प्रचुर उपयोग किया है, किन्तु तथ्यों के आधार पर यह सही नहीं है। हिन्दू धर्म का प्रवर्तक कौन- इस प्रश्न का कोई संतोषजनक उत्तर प्राप्त नहीं है। हिन्दू धर्म का आधारभूत अथवा मान्य ग्रंथ कौन-सा? इस प्रश्न का उत्तर भी उपलब्ध नहीं है। इस अवस्था में 'हिन्दू धर्म' यह प्रयोग विवादास्पद है और इस आधार पर किए जाने वाले निर्णय भी सही नहीं हो सकते। इस विषय में विनायक दामोदर सावरकर का अभिमत उल्लेखनीय है_ हिन्दू शब्द को किसी भी धर्मनिष्ठ अर्थ पर ही उपस्थित करना बड़ी मोटी भूल है। हिन्दू शब्द मूलत: देशवाचक, राष्ट्रवाचक है। इसका मुख्य आधार आसिन्धु-सिन्धु ही है।' - हिन्दू शब्द समाज और राष्ट्र का वाचक है, तब हिन्दू शब्द को धर्म के आधार पर बहुसंख्यक कैसे माना जा सकता है? जैसे वैदिक परम्परा में वैष्णव एक सम्प्रदाय है, वैसे ही श्रमण परम्परा का एक सम्प्रदाय है- जैन। श्रमण परम्परा और वैदिक अथवा ब्राह्मण परम्परा- दोनों प्राचीन हैं। इसलिए वैष्णव और जैन में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का भेद नहीं किया जा सकता। समाज प्रणाली के आधार पर इस्लाम और ईसाई धर्मों को अल्पसंख्यक और हिन्दू समाज को बहसंख्यक माना जा सकता है, किन्तु धर्म के आधार पर बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक विभाग नहीं किया जा सकता। इसलिए बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक की समस्या पर नए सिरे से चिंतन होना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525059
Book TitleSramana 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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