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________________ ३२ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक ३-४ / जुलाई-दिसम्बर २००६ बंधु को पूछिए कि उसकी पितृभूमि क्या है?' तो वह यह अवश्य कहेगा कि - उसकी पितृभूमि यह 'भारतभूमि' है। आप किसी भी जैन बन्धु को पूछिए कि उसकी पुण्यभूमि, धर्मभूमि कौन है? तो यह कहेगा कि 'यही भारतभूमि।' अर्थात् इन उपरोक्त दो बातों से ही स्पष्ट हो जाता है कि जैन बन्धु निर्विवाद हिन्दू हैं। __'हिन्दू' की ही शाखा- 'हिन्दू' शब्द की उपरोक्त व्याख्या का जैनधर्म के स्वातन्त्र्य से कोई भी विरोध नहीं है। वैदिकधर्म, जैनधर्म, बौद्धधर्म स्वतंत्र हों या परस्पर एक-दूसरे की शाखा हों, अस्तिवादी हों या नास्तिवादी हों, इन किसी भी प्रकार के परलोकविषयक-तत्त्वज्ञान पर या धर्म पर हिन्दुत्व की यह व्याख्या आधारित ही नहीं है। इसीलिए इस व्याख्या की दृष्टि से अपने को 'हिन्दू' कह लेने मात्र से अपनी धार्मिक स्वतन्त्रता में या गौरव में या श्रेष्ठता में थोड़ी भी न्यूनता आने का भय जैन-बंधुओं को रखने की आवश्यकता नहीं है। जैनों को ही क्यों, वैदिक, बौद्ध, सिक्ख, लिंगायतादि-किसी भी भारतीय धर्म या पंथ को इस तरह का भय इस व्याख्या के कारण नहीं रहता। यह व्याख्या इन धर्मों के विषय में निर्विवाद रूप से यह बात स्पष्ट करती है कि 'चूँकि सारे धर्म या पंथ इस भारतीय जाति में एवं इस भारतभूमि में ही पैदा हुए हैं और विकसित हुए हैं, यही भारतभूमि पितृभूमि एवं पुण्यभूमि है।' इस बात को एक शुद्ध ऐतिहासिक सत्य होने के कारण वैदिक, अवैदिक, सिक्ख, बौद्ध या जैन कोई भी हिन्दू साभिमान स्वीकार करके स्वयं मानेंगे और सगर्व कहेंगे कि- “यह भारतभूमि हमारे जैनों की या हमारे वैदिकों की 'पितृभूमि' है,"- इसमें कोई संशय नहीं है। लेकिन फिर जैन-बन्धुओं को इस विषय में संशय क्यों उत्पन्न हुआ? जब बहुत-से जैन बंधु साभिमान अपने को 'हिन्दू' कहते हैं, तब दूसरे कुछ जैन लोग अपने को 'हिन्दू' क्यों नहीं कहते?- इसका विचार करना चाहिए। अपने को हिन्दू नहीं मानने वाले जैन-बन्धुओं के आक्षेपों का समाधान उपरोक्त व्याख्या के अनुसार कि 'केवल जैन हिन्दू हैं', - यह कहकर करने पर और हिन्दुत्व के उपरोक्त सच्चे अर्थ के अनुसार 'हिन्दू' शब्द की देशनिष्ठ और राष्ट्रनिष्ठ व्याख्या करने पर भी जिन आक्षेपों के कारण वे लोग अपने को 'हिन्दू' कहने में डरते हैं, वे आक्षेप मूलतः लंगड़े हैं। उनका मुख्य आक्षेप है- “जैनधर्म 'हिन्दूधर्म' से मूल से ही स्वतन्त्र है, वह हिन्दूधर्म की शाखा नहीं है, अतः जैन 'हिन्दू' नहीं हैं।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525059
Book TitleSramana 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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