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________________ जैन 'हिन्दू' ही हैं, लेकिन किस अर्थ में? : ३१ • और धर्म हैं; वे सब हिन्दू हैं, उस राष्ट्र के ‘घटक' हैं।। यही सत्य सूत्ररूप से उक्त श्लोक में कहा है। हिन्दुत्व की ऐतिहासिक एवं सार्थ व्याख्या यही है कि 'जिसकी यह आसिंधु-सिंधु-तक भारत-भूमि, पितृभूमि और पुण्य-भूमि है; वह हिन्दू है अर्थात् व्यक्ति के सदृश जो धर्म व पंथ इस हिन्दू जाति में एवं इस हिन्दुस्तान में जन्मे, यानी जिस-जिस धर्म की व पंथ की यह भारतभूमि, पितृभूमि और पुण्यभूमि है; वह प्रत्येक धर्म एवं पंथ 'हिन्दू' है। इन विविध धर्मों में व पंथों में सत्य कौन-सा और श्रेष्ठ कौन-सा? इसका व्याख्या से बिलकुल सम्बन्ध नहीं है अर्थात् 'हिन्दूधर्म' यह नाम किसी एक विशिष्ट धर्म का या पंथ का वाचक नाम या पंथ या धर्म-विशेष का अभिन्न नाम नहीं है। वरन् जिन अनेक धर्मों की एवं पंथों का यह भारतभूमि, पितृभूमि, एवं पुण्यभूमि है; उन सभी को, सम्मिलित करनेवाले धर्मसंघ का 'हिन्दूधर्म' यह नाम है। हिन्दुत्व की यह व्याख्या हमारे जैन-बंधुओं के पक्ष में भी कैसी ठीक मिलती है, देखिए जैन भारतवासी हैं- कोई भी निष्ठावंत भारतीय जैन इस बात से कभी भी इनकार नहीं करेगा कि 'भारतभूमि उसकी मातृभूमि है।' भगवान् महावीर, भगवान् बुद्ध के सदृश एक गणतंत्रशाली सुविख्यात क्षत्रिय जाति में जन्मे थे। यहाँ अनेक बड़े-बड़े प्रचारक साधु, श्रावक, श्रमण आदि हुए हैं, चीन, अरेबिया, रूस आदि में नहीं। संसार का अन्य कोई भी देश इनकी 'पितृभूमि' का 'पितृलोक' का स्थान नहीं पा सकता। यह वस्तुस्थिति निर्विवाद है, यह स्वयंसिद्ध इतिहास है। इतने ही निर्विवाद रूप से यह भी सिद्ध है कि जैनधर्म के मूलाधार तीर्थंकरादि, धर्मधुरंधर महापुरुष, शास्ता, धर्मग्रन्थ, तीर्थक्षेत्र आदि इसी भारतभूमि में ही उदित हुए हैं, एवं अपने अस्तित्व से इसी को पावन करते आये हैं। यही भारतभूमि जैनों की भी पुण्यभूमि (Holy Land) है। मुसलमानों की धर्मभूमि जैसे अरेबिया; यहूदी और ईसाइओं की पुण्यभूमि जैसे पेलेस्टाइन; जैरुसलेम; पारसियों की जैसे पर्शिया; वैसे ही जैनों की धर्मभूमि, पुण्यभूमि यह 'भारतभूमि' है। इसी भारतभूमि में जैनधर्म पैदा हुआ और यहीं उसका विकास हुआ। __ अर्थात् जिसकी यह भारतभू, पितृभू एवं पुण्यभू है, वह हिंदू- इस व्याख्या के अनुसार भारतीय 'जैन' सम्पूर्णत: 'हिन्दू- हैं, यह निश्चित है। किसी भी जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525059
Book TitleSramana 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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