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________________ · जैन 'हिन्दू' ही हैं, लेकिन किस अर्थ में ? : २९ स्वीकृत की । रत्नागिरी, नासिक, पूना, नागपुर और अन्य स्थानों की हिन्दूसभाओं ने इस व्याख्या को स्वीकार किया है। हिन्द महासभा में यही व्याख्या मानी जाती है। इस व्याख्या को समझने के लिए प्रथमतः 'हिन्दू' शब्द के विषय में प्रत्येक विचारक हिन्दू को निम्न विधानों को ख्याल में रखना जरूरी है। कुछ विधान - (१) 'हिन्दू' शब्द किसी धर्मग्रन्थ, ईश्वर - प्रेषित दूत, अवतार या देवता के नाम पर से नहीं निकला है। वेदों का जो अनुयायी है वह ‘वैदिक', 'क्राइस्ट' का जो अनुयायी वह 'क्रिश्चियन', 'जिन' का जो अनुयायी वह जैन; 'बुद्ध' का जो अनुयायी वह बौद्ध, जो शिवपूजक वह शैव, विष्णुपूजक वह 'वैष्णव', इस प्रकार किसी भी धर्मग्रन्थ, पंथ या व्यक्ति के साथ 'हिन्दू' शब्द धर्मदृष्टि से बंधा नहीं है - यह उसकी उत्पत्ति से स्पष्ट ज्ञात होता है। जैसे मुहम्मद पैगम्बर के कुरान के पारलौकिक संदेश को माननेवाला मुस्लिम, अद्वैत को माननेवाला ‘अद्वैती’, नानकगुरु के पारलौकिक संदेश को माननेवाला 'सिक्ख' इत्यादि शब्द हैं; उसी प्रकार का 'हिन्दू' शब्द नहीं है । 'हिन्दू' शब्द के धात्वर्थ और उपयोग से स्पष्ट होता है कि यह शब्द किसी पारलौकिक तत्त्व, मत या पंथ के अनुयायी का वाचक नहीं है। (२) 'हिन्दू' शब्द की उत्पत्ति 'सिंधु' शब्द से हुई है। 'वेदों' में उनके अपने समय के राष्ट्र को 'सप्तसिंधु' नाम से सम्बोधित किया है, उसी प्राचीन समय में मुसलमानों के उदय के पूर्व मैं सैकड़ों वर्षों से प्राचीन पारसी हमारे राष्ट्र को उसी 'सप्तसिंधु' शब्द से निकले हुए 'हप्तहिंदु' नाम से सम्बोधित किया करते थे। प्राचीन बेबिलोनियन हमारे देश को 'सिंधु' कहते थे। उस शब्द के इस प्राचीनतम अर्थ का आज भी अवशिष्ट और प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि 'सिंधु नदी के किनारे पर स्थित एक प्रान्त का वही प्राचीनतम नाम हमेशा रहा है और अभी भी उसे सिंधु देश, सिंधु राष्ट्र (सिंधु, सिंध) ऐसा कहते हैं। 'सिंधु' शब्द का ही प्राकृत भाषा के ('स' का 'ह' होने के) नियमानुसार 'हिन्दू' यह प्राकृत शब्द बना। इस शब्द के इस अत्यन्त संक्षेप में बताये गये उत्पत्ति के इतिहास से यह स्पष्ट हो जाता है कि 'हिन्दू' यह शब्द वेदकाल में सप्तसिंधु इस अति प्राचीन मूलरूप से किसी भी पारलौकिक मत का यानी धर्म का निदर्शक न होकर एक देश का यानी एक विशिष्ट राष्ट्र का वाचक रहा है। इसका अर्थ- सर्वस्व • मूलतः धर्मनिष्ठ न होकर देशनिष्ठ या राष्ट्रनिष्ठ होता है। एक प्राचीन उल्लेख - 'भविष्यपुराण' में इस विषय का एक उल्लेख जितना कौतुकपूर्ण है, उतना ही स्पष्ट होने के कारण इस शब्द के वास्तविक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525059
Book TitleSramana 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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