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________________ २८ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक ३-४ / जुलाई-दिसम्बर २००६ संशय में पड़े हुए दूसरे लोगों को “तुम हिन्दू क्यों ?” कैसे समझाया जा सकता है ? हिन्दुत्व की स्पष्ट व्याख्या आज तक निश्चित न होने का मुख्य कारण यह है कि 'मुस्लिम धर्म या ईसाई धर्म की तरह हिन्दू धर्म भी किसी एक विशिष्ट ग्रन्थ पर या एक विशिष्ट पैगम्बर आदि के स्वरूप पर आधारित है' - यह बात प्रत्येक व्यक्ति मानने लगा। दूसरी दिशा- भूल यह हुई कि 'हिन्दू-धर्म' का अर्थ 'हिन्दुत्व' ही माना गया। इस शताब्दी में जो लगभग ५० के करीब व्याख्याएँ हुई हैं, वे इसी गलत दृष्टिकोण से बनी हैं। उनमें से बहुत सी व्याख्याएँ नाटेशन एण्ड कं. द्वारा प्रकाशित किए ‘Who is Hindu' इस पुस्तक में संगृहीत हैं । उनको देखने से उपर्युक्त कथन की सत्यता सिद्ध होती है। हिन्दुत्व की व्याख्या- इसलिये मैंने 'हिन्दुत्व' की व्याख्या उपर्युक्त प्राचीन विचारों को छोड़कर उस शब्द के मूल इतिहास के अनुसार करने की कोशिश की है। जब अनेक अर्थों के कारण संक्लिष्ट हुए अर्थ का मुख्यार्थ एवं उसका मर्म निश्चित करना होता है, तब उस शब्द के मूल को देखकर उसके इतिहास के अनुसार चलने से उस शब्द का मुख्यार्थ मिल जाता है। इसी मार्ग का अवलम्बन करके 'हिन्दू' शब्द की व्युत्पत्ति, उत्पत्ति एवं इतिहास के आधार पर हिन्दुत्व की नई व्याख्या करने का प्रयत्न किया है। इससे केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही उस शब्द को देखने से प्राचीन व्याख्याओं में जो गड़बड़ी थी, वह नहीं रहती है और निर्विवाद ऐतिहासिक आधार पर सुस्पष्ट, सर्वसंग्राहक एवं बुद्धिग्राह्य व्याख्या बन जाती है। वह व्याख्या पारलौकिक श्रद्धा, अदृष्ट-विषयक तत्त्ववाद, ग्रन्थ- विशेष या व्यक्ति की धार्मिक निष्ठा की वादग्रस्त नींव पर से नहीं बनी है। अतः यह बुद्धि की किसी भी कसौटी पर टिकती है "आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत - भूमिका । पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः । । " अर्थ - सिन्धु नदी से लेकर समुद्र - पर्यन्त की भारतभूमि (हिन्दभूमि) जिनकी पितृभू - अर्थात् पूर्वजों का स्थान और पुण्यभू अर्थात् धर्मसंस्थापक, प्रवर्तक, तीर्थ, भाषा आदि का स्थान है; वे सब हिन्दू हैं। सौभाग्य से यही व्याख्या स्वामी श्रद्धानन्द, महात्मा हंसराज, भाई परमानन्द प्रभृति आर्यसमाजी भाइयों ने अत्यन्त उत्सुकता एवं संतोष से सबसे पहले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525059
Book TitleSramana 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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