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________________ फतेहपुर सीकरी से प्राप्त श्रुतदेवी (जैन सरस्वती) की प्रतिमा : १४१ अभिलेखों के साथ प्राप्त हुई हैं। प्राप्त मूर्तियों में श्रुतदेवी जैन सरस्वती की मूर्ति विलक्षण एवं अद्वितीय है। आलोच्य शोध-पत्र में इस अनुपम कृति का ही वस्तुपरक अध्ययन प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है। यहाँ श्रुतदेवी जैन सरस्वती की गुलाबी रंग की प्रस्तर-मूर्ति का प्राप्त होना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह मूर्ति अलंकृत पादपीठ पर अंकित कमल-पुष्प पर त्रिभंग-मुद्रा में खड़ी है। यद्यपि यह मूर्ति पैरों के पास से खंडित है, फिर भी अपने मूर्ति-विन्यास के कारण हिन्दू सरस्वती से पूर्णत: पृथक प्रतीत होती है। जैन साहित्य में इस मूर्ति को 'वास्तु' एवं 'प्रतिमा' के रूप में जाना जाता है। इस मूर्ति में देवी को पूर्ण युवा दर्शाया गया है, उनका रंग साफ है। उनके सिर पर प्रभामंडल है तथा वे सिर से पांव तक सभी प्रकार के वस्त्राभूषणों से सुसज्जित हैं। उनके चार हाथ हैं जिनमें से दाहिने दो हाथों में वे क्रमश: कमल एवं वरद, जबकि बायें अन्य दो हाथों में क्रमश: पुस्तक एवं माला पकड़े हुए हैं। स्मरण रहे कि इस मूर्ति का दायाँ-बायाँ क्रमश: एक-एक हाथ टूटा हुआ है। उनके प्रसिद्ध वाहन हंस का भी गर्दन के ऊपर का सम्पूर्ण अंग टूट गया है। मूर्ति के दोनों ओर पादपीठ पर अवस्थित खंडित स्तंभों के चार सुरक्षित ताखों में जिनों की मूर्तियाँ विभिन्न मुद्राओं में उत्कीर्ण हैं जो इस मूर्ति की यथेष्ट पहचान के लिए पर्याप्त हैं कि अमुक मूर्ति जैन सरस्वती की है। इसकी छवि अद्भुत है। देवी के जटामुकुट में कमल की कलियाँ गुथी हुई हैं। अलंकृत कीर्ति-मुख, माथे पर संकुचितलट, कानों में तीन प्रकार के कुण्डल, ग्रविका (गले का आभूषण), कंठश्री (कंठ की शोभा), वैयजन्तीहार, भुजाओं में अलंकृत एवं दुहरे केयूर (बाजूबंद), कलाइयों में हस्तवलय (कंगन), चीते जैसे लोचदार कटि प्रदेश पर कटिसूत्र, जंघाओं पर घुटनों तक सुसज्जित उरुद्दाम, पैरों में पादवलय आदि वस्राभूषणों के साथ-साथ धनुषाकार भौंहे, रतनारे नयन, पतली एवं लम्बी नाक, गोल ठोढ़ी, प्रभावशाली गाल एवं पतले होठों के अतिरिक्त सम्पूर्ण अंग-सौष्ठव इस कृति के श्री-सौंदर्य को द्विगुणित करते हुए उत्कृष्ट मूर्तिकला को प्रदर्शित करता है। इसकी पादपीठ पर १०वीं-११वीं सदी की नागरी लिपि में, संस्कृत एवं स्थानीय भाषा में दो पंक्तियों का एक अभिलेख उत्कीर्ण है। इसका लिप्यंत्रण इस प्रकार है “ओं (सिद्धम्) संवत्सहस्रे सप्तषष्ठे सैकरिक्य श्रीवज्रामराज्ये 'सातिविमलाचार्यवसतौ वैसाखस्य सुद्धनवम्यां संचामरभल्लिक्कयर्ड्सष्ठीभिः स्रीसरस्वती संस्थापिता आहिलेन च"। (ओं (सिद्धम्) Jain Education International . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525059
Book TitleSramana 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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