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तीर्थंकरों की मूर्तियों पर उकेरित चिह्न : १३७
सिहानादिक द्वारा समर्पित आयाग पट (क्रमांक J. 249, प्रदेश संग्रहालय, लखनऊ), जो कंकाली टीला, मथुरा से खोजा गया था, उसमें केन्द्र में जिन बैठे हुए हैं और पट के सिरों पर दो स्तम्भ हैं, एक के ऊपर धर्मचक्र है और दूसरे के ऊपर एक हाथी है। जैन परम्परा में हाथी को दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ का लांछन माना जाता है। यहाँ वह जिन के ध्वज - प्रतीक ( emblem) के रूप में प्रदर्शित है।
भद्रनन्दि द्वारा प्रतिष्ठित आयागपट (क्रमांक J. 252, प्रदेश संग्रहालय, लखनऊ) पर हमें उसी प्रकार एक स्तम्भ प्राप्त हुआ है जिसपर धर्मचक्र है और दूसरे स्तम्भ पर एक सिंह आरूढ़ है। इस आयागपट के केन्द्र में प्रतिष्ठित जिन आकृति इसलिये अवश्य ही महावीर के रूप में पहचानी जानी चाहिए | "
अतः हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि कम से कम प्रथम या द्वितीय सदी ईस्वी पूर्व में जैनियों में प्रथानुसार तथा व्यवहार से भी तीर्थंकरों के मंदिरों के समक्ष ध्वज स्तम्भ निर्मित किये जाते थे और बाद में ये ही ध्वज - प्रतीक तीर्थंकरों के बिम्बों पर लांछनों (cognizances) के रूप में प्ररूपित किये जाने लगे।
परिशिष्ट
तीर्थंकरों के लांछनों की सूची "
१. ऋषभनाथ
२. अजितनाथ
३. सम्भवनाथ
४. अभिनन्दन
५. सुमति
६. पद्मप्रभ
७. सुपार्श्व
८. चन्द्रप्रभु
९. पुष्पदन्त (सुविधिनाथ) १०. शीतलनाथ
११. श्रेयांस
१२. वासुपूज्य
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ऋषभ
हाथी
अश्व
बन्दर
क्रौञ्च (श्वे.) कोक (दिग.)
कमल
स्वस्तिक (वे.) नन्द्यावर्त (दिग.) ११
चन्द्रकला
मगर
श्रीवत्स (वे.),
स्वस्तिक (दिग.)१२
खड्गी (श्वे.), गेंडा (दिग.) भैंसा
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