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________________ १३६ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक ३-४ / जुलाई-दिसम्बर २००६ के बारे में ज्ञात है (जो बलराम के तीर्थ-मंदिर के समक्ष स्थापित किया गया । होना चाहिए) तथा वट-वृक्ष-स्तम्भ (bunyan-tree capital) जो सम्भवत: कुबेर के मंदिर के समक्ष स्तम्भ से है। एक मकरध्वज स्तम्भ (capitals) है जो सम्भवतः कामदेव या प्रद्युम्न के तीर्थ-मंदिर के समक्ष स्तम्भ से लाया गया। यह सिंह-ध्वज (lion-pillar) जो मथुरा के जैनियों द्वारा पूज्य माना जाता है वह एक बड़े सिंहध्वज के उभारदार आकार (relief) में से प्रतिनिधित्व (representation) करने वाला लघु चित्र (miniature) है। यह संभवत: महावीर को समर्पित किसी मंदिर के समक्ष निर्मित किया गया था क्योंकि सिंह महावीर के लांछन रूप में ज्ञात है। अब यह जानना रुचिकर होगा कि आचार्य हेमचन्द्र अपने अभिधानचिन्तामणि-कोश में चौबीस जिनों के लांछनों को 'अर्हतम् ध्वज: से अभिहित करते हैं। यही दृष्टिकोण दिगम्बर लेखक पण्डित आशाधर भी प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि प्रत्येक जिन का लांछन उसके छत्रिय कुटुम्ब या वंश (herald) के आधार पर निर्धारित किया गया । प्रो० वी. एस. अग्रवाल द्वारा प्रकाशित अहिच्छत्र मृण्मूर्ति फलक (terracotta plaque) से हमें ज्ञात होता है कि दो महाभारत के युद्ध करते हुए योद्धाओं के निजी ध्वजाओं (banners) पर दो भिन्न प्रतीक सुअर तथा चंद्रकला थे। जैन परम्पराओं के अनुसार सभी तीर्थंकरों का जन्म क्षत्रिय वंशों में हुआ था। अत: उनकी ध्वजाओं पर अंकित प्रतीक ही उनके संज्ञान चिह्न (cognizance) माने जाते थे जो लगभग चौथी या पांचवीं ईस्वी सर्दी के पश्चात् तीर्थंकरों की मूर्तियों (images) पर दृष्टिगत होने लगे ताकि उनकी पहचान सुविधाजनक ढंग से हो सके। यह आवश्यक भी था क्योंकि विभिन्न तीर्थंकरों के सभी मूर्तिशिल्प एक निश्चित रूप वाले रहते हैं, चाहे वे कायोत्सर्ग मुद्रा में हों या पद्मासन पर। कुषाण काल में, तीर्थंकरों के बिम्बों पर लांछन उकेरे नहीं जाते थे और वे तभी पहचाने जा सकते थे जब उनके नाम उनकी पादपीठ पर शिलालेखों में उल्लिखित किये जाते थे। इसलिये यह निष्कर्ष निकाला गया कि कुषाणकाल के पश्चात् लांछनों की प्रस्तुति हुई। किन्तु अब कुषाण कालावधि में मथुरा के जैनियों में सिंह-ध्वज पूज्य वस्तु रही है, अत: यह कल्पना करना तर्क योग्य होगा कि कषाण काल में और कम से कम लगभग प्रथम या द्वितीय सदी में विभिन्न तीर्थंकरों के तीर्थ मंदिरों हेतु विभिन्न ध्वज-स्तम्भों या . ध्वज प्रतीकों (emblems) का अस्तित्व था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525059
Book TitleSramana 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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