________________
दुःख का कारण कमी नहीं कामना : १२३
"जो कामनाएँ पूरी नहीं होतीं, उससे सम्बन्धित वस्तु के अभाव का दुःख सदा बना ही रहता है अर्थात् कामना के अपूर्तिजनित अभाव का दुःख संसार-अवस्था में सदा रहता ही है।
जड़ता (मूर्छा)- कोई भी कामना मोह-मूर्छा-ग्रस्त हुए बिना उत्पन्न नहीं हो सकती। उस मोह या मूर्छा से व्यक्ति अपना भान भूल जाता है। अपने चिन्मय-स्वरूप की विस्मृति हो जाती है। कामना की जितनी तीव्रता होती है, उतनी ही गहरी विस्मृति होती है। अपना भान भूलना या स्वरूप-विस्मृति, मूर्छाभाव या जड़ता का ही द्योतक है। यह जड़ता ही विषय-भोग में सुखानुभूति कराती है- जैसे शराबी को शराब से बेहोशी की अवस्था में सुखानुभूति होती
आकुलता- कोई भी व्यक्ति-उसकी कोई इन्द्रिय जबतक विषयप्रवण नहीं होती, तबतक वह इन्द्रिय का सुख नहीं भोग सकता। इन्द्रिय की विषयोन्मुखता शान्ति को भंग कर चित्त को अशान्त एवं व्याकुल बनाती है। परंतु जड़ता या मोह-मूर्छा के कारण प्राणी उस आकुलता-व्याकुलता का अनुभव नहीं करता और सुख का अनुभव करता है।
पराधीनता- 'क' को कार मिली, उससे वह उसमें बैठने का आदी (व्यसनी) हो गया। अब उसे साइकिल पर बैठकर या पैदल जाने को कहा जाय तो उसे बड़ा अटपटा लगेगा, दुःख होगा। अब वह जाने के लिये कार के अधीन हो गया। कार इधर-उधर गयी तो उसका घर के बाहर जाना कठिन हो गया। इस प्रकार प्रत्येक इन्द्रिय-जन्य सुख व्यक्ति को वस्तु के अधीन अर्थात् पराधीन बनाता है।
नश्वरता- जिन पदार्थों से विषय-सुख मिलता है, वे सभी नश्वर हैं। जब पदार्थ ही नाशवान हैं तो यह भी स्वाभाविक ही है कि उससे मिलनेवाला सुख भी क्षणिक ही होगा।
नीरसता- हम ऊपर कार के द्वारा क्षणिक सुख के उदाहरण में तथा भोजन, संगीत, दृश्य-ताजमहल आदि के उदाहरणों में देख चुके हैं कि इन्द्रियजनित सुख प्रतिक्षण क्षीण होता जाता है और उस सुख का अन्त नीरसता में होता है। मन उससे ऊब जाता है। इसी प्रकार इन्द्रियजनित सभी सुख मन
को उबाने वाले हैं। यहाँ तक कि नव-दम्पति, जिनका आज ही विवाह हुआ . है और वे वर-वधू जो परस्पर अत्यन्त स्नेह रखते हैं, उनका भी परस्पर मिलने
आदि से मिलने वाला सुख कुछ ही घंटो में सूख जाता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org