SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दुःख का कारण कमी नहीं कामना : ११७ • साम्रगी के साधन पास नहीं थे, फिर भी उन्हें इनके प्राप्त नहीं होने का दुःख नहीं था, क्योंकि उनको इनकी कामनाएँ नहीं थीं। जबकि आज का साधारण व्यक्ति भी इनकी कामना करके इनकी प्राप्ति के लिए व्यथित हो जाता है। इससे यह परिणाम निकलता है कि दुःख का कारण कामनायें हैं न कि वस्तुओं की कमी या अभाव। कामना के अभाव में चित्त शान्त रहता है और चित्त का शान्त या समता में रहना ही सुख है। इस तथ्य को समझने के लिए एक और उदाहरण पर विचार करें। __ किसी छोटे से गाँव के बच्चे को उसकी माँ किसी नगर में ले जाती है। वह खिलौने की दुकान पर पहुँचता है और प्रथम बार बहुत से खिलौने देखता है। देखते ही उस खिलौनों को पाने की कामना उत्पन्न होती है। कामना उत्पन्न होते ही कामना-पूर्ति के लिए चित्त में व्याकुलता व अशाति उत्पन्न होती है। इस प्रकार वह बच्चा खिलौने न मिलने से दुःखी अनुभव करता है। जिस खिलौने के लिए अभी वह मचल रहा है, वह खिलौना उसके पास अपने गाँव में भी नहीं था, परन्तु वहाँ इस खिलौने के न होने से उसे कुछ भी दुःख नहीं था। दुःख यदि खिलौने के अभाव से होता तो पहले भी होना चाहिए था। इससे स्पष्ट है कि उस बच्चे को दुःख खिलौने के अभाव से नहीं, प्रत्युत खिलौना पाने की कामना-उत्पत्ति से हुआ है। अत: यह मानना होगा कि दुःख वस्तुओं के अभाव से नहीं, कामना उत्पत्ति में है। यह सबका अनुभव है कि जो व्यक्ति जिस वस्तु को नहीं जानता है उसे उस वस्तु के नहीं होने से कोई दुःख नहीं होता है। दुःख तब होता है जब व्यक्ति उस वस्तु को देखने-सुनने आदि से जानता है और साथ ही यह मानता है कि इस वस्तु की प्राप्ति से सुख होता है। तब उसे वस्तु को पाने की कामना उत्पन्न होती है। कामना उत्पन्न होने से चित्त अशान्त हो जाता है। चित्त की अशान्ति ही दुःख है। तात्पर्य यह है कि दुःख कि उत्पत्ति वस्तु के अभाव से नहीं होती है, अपितु वस्तु की प्राप्ति से दु:ख होता है। इस मिथ्या मान्यता के कारण वस्तु के पाने की कामना उत्पन्न होने से ही दुःख होता है। सुख कामना-पूर्ति में नही हैं, कामना के त्याग में है जो व्यक्ति इस तत्थ से परिचित है कि "सख कामना पूर्ति में नहीं है कामना के त्याग में हैं' वह कितनी ही नई-नई वस्तुओं को देखे, उनके विषय में जाने, उसके मन में उन वस्तुओं को पाने की यदि कामना नहीं होती है तो वह दुःखी नहीं होता। व्यक्ति इन्द्रियभोग की जिन-जिन वस्तुओं को देखता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525059
Book TitleSramana 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy