SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक ३-४ / जुलाई-दिसम्बर २००६ पइणा । । छित्तं मुहं हसिज्जइ चंदावत्थं गअं (तत्रैव: गाथा - सं०१३) इस गाथा में एक ऐसी नायिका का चित्रण है, जिसके हाथ रसोई के काम में लगे रहने के कारण मलिन हो गये हैं। उस नायिका ने उन्हीं मलिन कालिख लगे हाथों से अपने मुँह को छुआ है जिससे उसके मुख में कालिख लग गई है, जिसे देखकर उसका पति उपहासपूर्वक कहता है कि कालिख - -लगा तुम्हारा मुँह सच्चे अर्थ में लांछनयुक्त चन्द्रमा के समान प्रतीत होता है। यहाँ विरूपता ही अलंकरण हो गई है; क्योंकि जिसका जो उचित कार्य है, उसके करने में विकृति भी प्रकृति बन जाती है। कुलस्त्रियों के लिए गृहकार्य से विमुख होना ही अनुचित है, यही यहाँ ध्वनि है, जो वाच्यार्थ से सर्वथा भिन्न या तिरस्कृत होने के कारण अत्यन्त तिरस्कृतवाच्यध्वनि है। इसे वस्तु से वस्तुध्वनि या वाच्यार्थ का रूपान्तर होने से अर्थान्तरसंक्रमितवाच्यध्वनि भी कह सकते हैं। घण्टा बजाने के बाद उससे निकली रनरनाहट की जो सूक्ष्म आवाज गूँजती है, वही ध्वनि है। इस प्रकार, काव्य की ध्वनि वाच्य अर्थ से निकले भिन्न अर्थ में निहित रहती है, जिसकी गूँज की प्रतीति हृदयों को होती है । पाँचवी शती के कूटस्थ प्राकृत महाकवि प्रवरसेन -प्रणीत 'सेतुबन्ध' महाकाव्य की, सागरवर्णन से सम्बद्ध इस गाथा में अलंकार से अनुरणित वस्तुध्वनि की मनोज्ञता द्रष्टव्य है: उक्खअदुमं व सेलं हिमहअकमलाअरं व लच्छिविमुक्कं । पीअमइरं व चसअं बहुलपओसं व मुद्धचंदविरहिअं । । ( आश्वास २: गाथा ११ ) कवि की उत्प्रेक्षा है कि समुद्र उस पर्वत के समान लगता है, जिसके पेड़ उखाड़ लिये गये हों; वह समुद्र उस श्रीहीन सरोवर जैसा प्रतीत होता है, जिसका कमलवन तुषार से आहत हो गया है; वह उस प्याला के सामन दिखाई पड़ता है, जिसकी मदिरा पी ली गई हो और वह उस अन्धकारपूर्ण रात्रि की तरह मालूम होता है, जो मनोरम चन्द्रमा से रहित हो । समुद्र के सन्दर्भ में महाकवि की इस उत्प्रेक्षा (अलंकार) से समुद्र के विराट् और भयजनक रूप जैसी वस्तु ध्वनित या व्यंजित होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525059
Book TitleSramana 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy