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________________ १०० : श्रमण, वर्ष ५७, अंक ३-४ / जुलाई-दिसम्बर २००६ यदृच्छावाद यदृच्छावाद का मन्तव्य है कि किसी कारण विशेष के बीच ही किसी कार्य विशेष की उत्पत्ति हो जाती है। किसी घटना अथवा कार्य विशेष के लिए किसी निमित्त की आवश्यकता नहीं होती। यदृच्छावाद, अकस्मातवाद, अनिमित्तवाद, अकारणवाद, अहेतुवाद आदि एकार्थक हैं। इनमें कार्यकारणभाव का अभाव होता है। इस प्रकार की मान्यता का उल्लेख श्वेताश्वतर उपनिषद् के मंत्र १-२, महाभारत के शान्तिपर्व के श्लोक २३३-२३ तथा न्यायसूत्र ४-१-२२ आदि में उपलब्ध होता है। भूतवाद भूतवादियों की मान्यता है कि पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु इन चार भूतों से ही सब पदार्थों की उत्पत्ति होती है। जड़ और चेतन समस्त भावों का आधार ये चार भूत ही हैं। इन भूतों के अतिरिक्त कोई अन्य चेतन या अचेतन तत्त्व जगत् में विद्यमान नहीं है। जिसे अन्य दर्शन आत्मतत्त्व या चेतन तत्त्व कहते हैं उसे भूतवादी भौतिक ही मानते हैं। पुरुषवाद पुरुषवादियों की मान्यता है कि सृष्टि का रचयिता, पालनकर्ता एवं संहर्ता पुरुष विशेष अर्थात् ईश्वर है जिसकी ज्ञानादि शक्तियाँ प्रलयावस्था में भी विद्यमान रहती हैं। पुरुषवाद के दो रूप हैं: ब्रह्मवाद और ईश्वरवाद। ब्रह्मवादियों का मत है कि जैसे मकड़ी जाले के लिए, चन्द्रकान्तमणि जल के लिए एवं वटवृक्ष जटाओं के लिए हेतभत हैं वैसे ही ब्रह्म सम्पूर्ण जगत् के प्राणियों की सष्टि, स्थिति तथा संहार के लिए निमित्तभूत है। इस प्रकार ब्रह्मवाद के मतानुसार ब्रह्म ही संसार के समस्त पदार्थों का उपादानकारण है। ईश्वरवादियों का मन्तव्य है कि स्वयंसिद्ध चेतन और जड़ द्रव्यों (पदार्थो) के पारस्परिक संयोजन में ईश्वर निमित्तभूत है। जगत् का कोई भी कार्य ईश्वर की इच्छा के बिना नहीं हो सकता। इस प्रकार ईश्वरवाद के मतानुसार ईश्वर संसार की समस्त घटनाओं का निमित्तकारण है। वह स्वयंसिद्ध जड़ और चेतन पदार्थों (उपादानकारण) का नियन्त्रक एवं नियामक (निमित्तकारण) है- विश्व का संयोजन एवं व्यवस्थापक है। दैववाद दैववाद और भाग्यवाद एकार्थी हैं। केवल पूर्वकृत कर्मों के आधार पर बैठे रहना एवं किसी प्रकार का पुरुषार्थ अथवा प्रयत्न न करना दैववाद है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525059
Book TitleSramana 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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