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________________ गाहा : एवं च ठिए तुह मण-निव्वुइ-हेउं तीए वयणेण आगया अहयं । कहणत्थं पत्थुय-वत्थु-वित्थरस्सेत्थ तुह पासे ।।२०१।। संस्कृत छाया :- एवं च स्थिते तव मनो-निवृत्ति-हेतुं तस्या वचनेनागताऽहम् ।। कथनार्थं प्रस्तुत-वस्तु-विस्तारस्यात्र तव पार्श्वे ।।२०१।। गुजराती अर्थ :- अने आ प्रमाणे थये छते हे चित्रवेग! तमारा मननी शांतिने माटे कनकमालाना कहेवा थी प्रस्तुत वस्तुना विस्तारने कहेवा माटे हुं तमारी पासे आवी छु। हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार होने पर हे चित्रवेग! आपके मन की निवृत्ति हेतु कनकमाला के कहने से प्रस्तुत विषय को विस्तार से कहने के लिए मैं आपके पास आई हूँ। गाहा : ता मा सुंदर! वरणय-सवणाओ दुम्मणो तुम होस। जं देवयाए वयणं अलियं न य हवइ एयं तु ।। २०२।। संस्कृत छाया : तस्माद् मा सुन्दर! वरण-श्रवणतः दुर्मनस्त्वं भव ।। यद् देवतायाः वचनमलीकं न च भवेत् एतत्तु ।।२०२।। गुजराती अर्थ :- वळी हे सुन्दर! लग्ननी वात सांभळीने तमारे जरा पण मन दुभाववु नही, कारण के देवतानी वाणी असत्य क्यारेय नथी थती! हिन्दी अनुवाद :- पुन: हे सुन्दर! विवाह की बात सुनकर आप तनिक भी चिंतित मत होना क्योंकि देवता की वाणी कभी असत्य नहीं होती है। गाहा : एवं च कणगमाला भाणेइ न नाह! तं पमोत्तूण । अन्नस्स करो लग्गइ मह हत्थे इत्थ जम्मम्मि ।। २०३।। संस्कृत छाया : एवं च कनकमाला भणयति न नाथ! त्वां प्रमुच्य। अन्यस्य करो लगति मम हस्ते अत्र जन्मनि ।।२०३।। गुजराती अर्थ :- आ प्रमाणे हे नाथ! कनकमाला ए मारा द्वारा कहेवराव्यु छे वळी सविशेष का छे के, आ जन्ममां तमारा सिवाय अन्य कोई पुरुषन हाथ मारा हाथमा जोडावानो नथी! 202 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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