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________________ गाहा :न य पिउ-वयणं सोउं इच्छिय-जण-विरह-कारयं हिययं। वज्ज-घडियंव मन्ने जं नवि सय-सिक्करं जासि ।।१५३।। संस्कृत छाया : न च पितृवचनं श्रुत्वा इच्छित-जन-विरह-कारकं हृदयम् । वज्रघटितमिव मन्ये यनापि शत-शर्करं यासि ।।१५३|| गुजराती अर्थ :- इच्छित जननो विरह करावनार पिताना वचनने सांभळीने हे हृदय! तारा केम अत्यारे पण “सो टूकडा थता नथी, तेथी हुँ मानु छु के तुं वजथी घडायेलो छ। हिन्दी अनुवाद :- वाञ्छित जन का विरहयुक्त पिताजी के वचन सुनकर भी हे हृदय! तेरे अभी क्यों "सौ टुकड़े” नहीं होते हैं, अत: मुझे लगता है तूं वज्र से बना है। गाहा : अम्माए तायस्सवि वल्लहिया हं तिइय मरट्टो जो । हिययम्मि आसि मज्झं सोवि हु इण्डिं पलीणोत्ति ।। १५४।। सुह-सज्झं चिय एयं कज्ज मा पुत्ति! कुण विसायंति । एवंविह-वयणेहिं पयारिया जेण अंबाए ।। १५५।। संस्कृत छाया : अम्बायाः तातस्यापि वल्लभाऽहं इति एष मरटो यः । हृदये आसीद् मम सोऽपि खलु इदानीं प्रलीन इति ।।१५४।। सुखसाध्यं एव एतत् कार्यं मा पुत्रि! कुरु विषादमिति। एवं-विध-वचनैः प्रतारिता येन अम्बया ।।१५५।। गुजराती अर्थ :- माता-पिताने पण हुं प्रिय छु ए प्रमाणे हृदयमा जे गर्व हतो ते पण अत्यारे नाश पामी गयो छे। अने पुत्रि! आ कार्य सुख साध्य छे तेथी तुं दुःखने धारण न कर इत्यादि वचनो वड़े माताए जेथी मने छेतरी। हिन्दी अनुवाद :- माता-पिता को मैं प्रिय हूँ ऐसा भी मुझे जो गर्व था अब वह भी चला गया है! हे पुत्री! यह कार्य तो सुख-साध्य है, अत: तूं दुःखी न हो इत्यादि वचन द्वारा माता ने भी मुझे धोखा दिया। गाहा : जस्सुवरि तुज्झ इच्छा दायव्वा तस्स तं मए पुत्ति!। इय निय-वयणं ताएण संपयं अन्नहा विहियं ।। १५६।। 186 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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