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________________ गुजराती अर्थ :- वळी ते मनुष्यपणु जराथी पराभव पामेल शारीरिकमानसिक अनेक दुःखना संतापथी युक्त, अने रोग-शोक, व्याधीना आवास तुल्य छ। हिन्दी अनुवाद :- पुन: वह मनुष्यत्व जरा से अभिभूत, शारीरिक-मानसिक अनेक द:खों से संतप्त और रोग, शोक, व्याधि के आवास तुल्य हैं। गाहा : पवणाहय-धय-वड-चंचलाओ लच्छीओ तहय मणुयाणं। अणवट्ठिया य नेहा सुहि-सयण-पियाइ-जण-विसया ।।७६।। संस्कृत छाया : पवनाहत-ध्वजपट-चञ्चला लक्ष्मीः तथा च मनुष्याणाम्। अनवस्थिताश्च स्नेहा सुहृत्-स्वजनप्रियादि-जनविषयाः ।।७६।। गुजराती अर्थ :- मनुष्योनी लक्ष्मी पवनथी फरकती ध्वजपताका समान चञ्चल छे अने मित्रो-स्वजनो तथा पित्रादि परिवार विषयक स्नेह अस्थिर छ। हिन्दी अनुवाद :- मनुष्यों की लक्ष्मी पवन से झूलती पताका समान चञ्चल है और 'मित्र, स्वजन तथा पित्रादि परिवार विषयक स्नेह अस्थिर है। गाहा : विसय-सुहंपि हु परिणाम-दारुणं नारयाइ-दुह-हेऊ । आरंभ-परिग्गह-संचियस्स पावस्स परिणामो।।७७।। संस्कृत छाया : विषयसुखमपि खलु परिणामदारूणं नारकादि-दुःखहेतुः। आरम्भ-परिग्रह-सञ्चितस्य पापस्य परिणामः।।७७।। गुजराती अर्थ :- विषयसुख पण निश्चे परिणामे भयंकर नारकादि दुःखना कारण रूप छे अने आरंभ-परिग्रहथी सञ्चित थयेला पापनो ज परिणाम छे। हिन्दी अनुवाद :- निश्चय ही विषय सुख भी भयंकर नारकादि दुःख के हेतु हैं और यह आरंभ-परिग्रह से सञ्चित किए पाप का ही फल है। गाहा : अइभीसणेण बंधेण गरुय-पीडावहो खु जीवाणं । मिच्छा-वियप्प-वसओ सव्वंपि हु सोक्खमाभाइ।।७८।। 160 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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