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________________ हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार मुनिभगवन्त की स्तुति करके मुनि के मुख-कमल पर स्थापित मन और नयनवाला अतिदूर और अतिनजदीक भी नहीं ऐसी भूमि पर राजा बैठा। गाहा : मुनि देशना एत्थंतरम्मि मुणिणा परत्थ-संपायणेक्क-रसिएणं । गंभीर- भारईए पारद्धा देसणा एवं ।।७३।। संस्कृत छाया : अत्रान्तरे मुनिना परार्थ-सम्पादनैकरसिकेन । गम्भीर-भारत्या प्रारब्धा देशना एवम् ।।७३।। गुजराती अर्थ :- एटलीवारमा परार्थ करवामां एक रसिक एवा मुनिवड़े गंभीर वाणीपूर्वक आ प्रमाणे देशनानो प्रारंभ करायो। हिन्दी अनुवाद :- उतनी देर में परार्थ करने में रसिक ऐसे मुनि द्वारा गम्भीर वाणी से इस प्रकार देशना प्रारम्भ की गई। गाहा : अइदुलहं मणुयत्तं असार-संसार-सागर-गयाणं। कुगईण पउर-भावा स-कम्म- वसगाण जीवाणं।।७४। संस्कृत छाया : अतिदुर्लभं मनुजत्वं असार-संसार-सागरगतानाम् । कुगतिनां प्रचुर-भावात् स्वकर्मवशगानां जीवानाम् ।।७४।। गुजराती अर्थ :- 'हे भव्यात्माओ! आ असार संसार सागरमां भ्रमण करता, पोताना कर्मवश जीवोने पुष्कळ कुगतिना प्रचुर भावोनी वच्चे मनुष्यपणु अतिदुर्लभ छ।' हिन्दी अनुवाद :- 'हे भव्यात्मन्! इस असार संसार सागर में भ्रमित, स्वकर्मवश, जीवों को कुगति के प्रचुर भावों के बीच में मनुष्यत्व अतिदुर्लभ है।' गाहा : तंपि हु जराभिभूयं आवासो रोग-सोग-वाहीणं। सारीर-माणसाणेय-दुक्ख-संपाय-कलियंति ।।७५।। संस्कृत छाया : तदपि खलु जराभि-भूत मावासो रोगशोकव्याधीनाम् । शारीरमानसानेक-दुःख-संपातकलितमिति 11७५।। 159 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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