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________________ श्वेताम्बर आगम और दिगम्बरत्व : ३ की आराधना करके सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिवृत्त, सर्वदुःखहीन हो गया। इस वर्णन से यह जाहिर होता है कि उस समय जैन साधु संघ दो दलों में विभाजित थे। एक थे पार्श्वनाथ के अनुयायी “पार्श्वपत्य" जो सामायिक नहीं करते थे और आत्मा को ही सामायिक मानते थे तथा प्रतिक्रमण भी नहीं करते थे और ब्रह्मचर्य नामक अलग से महाव्रत नहीं मानते थे। दूसरे थे महावीर के अनुयायी बहुश्रुत "स्थविर" जो सामायिक प्रतिकमण नियमपूर्वक करते थे और ब्रह्मचर्य को अलग से महाव्रत मानते थे। जब कालस्यवेषिक पुत्र से स्थविरों का वार्तालाप और विचारों का आदान-प्रदान हुआ तो वह भी महावीर का अनुयायी होकर नग्न विचरण करने लगा। इसका यह अर्थ स्पष्ट है कि महावीर के स्थविर शिष्य दिगम्बर ही होते थे और नग्नता की श्रेष्ठता ही इस कथानक से दर्शित इसी की पुष्टि कात्यायन सगोत्र स्कंदक परिव्राजक के प्रसंग से होती है। जिसने श्रमण महावीर के पास जाकर उनके वचनों से प्रभावित होकर अपने त्रिदण्ड और कुण्डिका का ही नहीं किन्तु एकान्त में जाकर अपने गेरुआ वस्त्रों को भी छोड़ दिया। उसके पश्चात् श्वेत वस्त्र धारण करने का कोई संकेत नहीं है। (२) आचारांग सूत्र में साधुओं के वस्त्रों के विषय में चर्चा इस प्रकार है जे भिक्खू तिहिं वत्थेहिं परिवुसिते पायचउत्थेहिं तस्सणं णो एवं भवति चउत्थं वत्थं जाइस्सामि। से अहेसणिज्जाई वत्थाई जाएज्जा, अहापरिग्गहियाई वत्थाई धारेज्जा णो धोएज्जा, णो रएज्जा, णो धोयरत्ताई वत्थाइं धारेज्जा, अपलिउंचमाणे गामंतरेसु, ओमचेलिए। एयं खु वत्थधारिस्स सामग्गियं ।१। अहपुण एवं जाणेज्जा उवतिक्कंते खलु हेमंते गिम्हे पडिवन्ने अहापरिजुन्नाइं, वत्थाइं परिट्ठवेज्जा, अदुवा संतरुत्तरे, अदुवा ओमचेले, अदुवा एगसाडे अदुवा अचेले, लाघवियं आगममाणे। तवे से अभिसमन्नागए भवति। जमेयं भगवया पवेदितं तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया ।२। जस्सणं भिक्खस्स एवं भवति-पुट्ठो खलु अहमंसि, नालमहमंसि सीयफासं अहियासित्तए से वसुमं सव्व समण्णागय पन्नाणेणं अप्पाणेणं केइ अकरणाए आउठे तवस्सिणो ह तं सेयं जमेगे विहमादिए, तत्थावि तस्स काल परियाए, सेवि तत्थ विअंतिकारए इच्चेतं विमोहायतणं हियं, सुहं, खमं, णिस्सेयसं, आणुगामियं त्ति बेमि।। आयारो-१८।४।४३-६१॥ जे भिक्खू दोहिं वत्थेहिं परिवुसिते पाय तइएहिं तस्स णं णो एवं भवति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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