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श्रमण, वर्ष ५७, अंक १ जनवरी-मार्च २००६
जैन धर्म के जीवन मूल्यों की प्रासङ्गिकता
दुलीचन्द जैन*
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आज सारा विश्व हिंसा, तनाव एवं आतंकवाद से ग्रस्त है। यद्यपि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के आशातीत विकास के कारण मनुष्य को बहुत सारी सुविधाएँ एवं आराम के साधन प्राप्त हुए हैं पर कहीं न कहीं हम कुछ कमी महसूस कर रहे हैं। आज मनुष्य का मन तनाव से ग्रस्त है, एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के मध्य सम्बन्धों में संकुचितता आई है तथा मनुष्य और अधिक स्वकेंद्रित हो गया है। भौतिक संसाधनों के विकास के साथ मनुष्य के हृदय का भी विकास होना चाहिये था पर वह हुआ नहीं। अत: विश्व के श्रेष्ठ चिन्तक एवं विचारक इस बात पर गम्भीरता से विचार करने लगे हैं कि वास्तविक सुख, शान्ति एवं सौहार्द के लिए जीवन मूल्यों का प्रचार होना चाहिये तथा मूल्य हमारे जीवन के अभिन्न अंग बनने चाहिये। सूरत का घोषणा-पत्र
दो वर्ष पूर्व दिनांक १५-१०-२००३ को हमारे राष्ट्रपति डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम ने सूरत में एक भव्य धार्मिक सम्मेलन में भाग लिया, जिसमें १५ धर्मों के श्रेष्ठ प्रतिनिधि सम्मिलित हुए थे। राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में बताया कि प्रत्येक धर्म के दो अंग होते हैं, पहला जो क्रियाकाण्डमूलक होता है, जो साधु-संतों द्वारा स्थापित होता है तथा दूसरा जो जीवन के नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों पर आधारित होता है, जिसे हम अच्छा जीवन जीने की शैली भी कह सकते हैं। यह जो दूसरा अंग है, उसके बारे में सभी धर्मों ने कहा कि वह दया और प्रेम पर आधारित है। सरत के इस घोषणा-पत्र पर १५ धर्मों के प्रतिनिधियों के हस्ताक्षरों से यह स्पष्ट हो जाता है कि सभी धर्मों के नैतिक मूल्यों में एकरूपता है। इस सम्मेलन ने यह सिद्ध भी किया कि सभी धर्मों ने मिलकर ही दया और प्यार के पुल का निर्माण किया है । सूरत के इस आध्यात्मिक सम्मेलन में ५ योजनाओं की भी घोषणा की गई, जिसे सभी धर्मों के प्रतिनिधियों ने स्वीकार किया। ये पाँच योजनाएं हैं :*दुलीचन्द जैन, सचिव, जैन विद्या शोध संस्थान, ७०, शम्बुदास स्ट्रीट, चेन्नई
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