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________________ ७८ श्रमण, वर्ष ५७, अंक १ / जनवरी-मार्च २००६ ४. बंध और मोक्ष के सन्दर्भ में सांख्यवादियों का खण्डन ५. पुण्य और पाप के सन्दर्भ में अन्य कई तीर्थिकों का खण्डन ६. आश्रव और संवर के संदर्भ में अन्य कई तीर्थिकों का खण्डन ७. वेदना और निर्जरा के संदर्भ में अन्य कई तीर्थिकों का खण्डन ८. क्रिया और अक्रिया के सन्दर्भ में सांख्यवादियों और बौद्धों का खण्डन ९. क्रोध, मान, माया, लोभ के सन्दर्भ में अन्य कई तीर्थिकों का खण्डन १०. राग और द्वेष ११. देव और देवी १२. नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव, चार गतियाँ १३. सिद्धि, असिद्धि और आत्मा की सिद्धि : १४. साधु और असाधु १५. कल्याण और पाप के सन्दर्भ में उपरोक्त सभी दर्शनों को नास्तिक मिथ्यात्वी और अनाचारसेवी बताया। यदि दर्शन और श्रमण परम्परा दोनों को एक साथ रखें, तो जैन साहित्य में सर्वाधिक उल्लेख है, मक्खलिगोशाल, संजय, सांख्य, ब्राह्मण, हस्तितापस, आजीवक एवं अम्बड परिव्राजक का। इन सभी के साथ महावीर स्वामी के वादविवाद का उल्लेख करते हुए निग्रंथ परम्परा की श्रेष्ठता घोषित की गई। - इस प्रकार इस लेख का योगदान यह है कि जो तत्कालीन सम्प्रदायों के नाम यत्र-तत्र प्राप्त हो रहे थे, उन्हें एक स्थान पर एकत्र किया गया। यदि वर्णित नामों की गिनती की जाए तो यह लगभग एक सौ पचास के आस-पास ठहरती है। सम्भावना यह हो सकती है, कि जैन भिक्षु तत्कालीन सम्प्रदायों के अधिक सम्पर्क में आए होंगे, और जितने अधिक से उनका धार्मिक मत विभेद हुआ, उनका उन्होंने उल्लेख किया। अधिक से अधिक संख्या, उनके अधिक से अधिक प्रभाव को बताती है। यह भी सम्भव है, आज के वैश्यों की तरह अधिक से अधिक गणनाएँ बताने में जैन साहित्य भी रुचि रखता हो । सभी वर्ग वैदिक यज्ञ और कर्मकाण्ड का विरोधी प्रतीत होता है, पर इनमें सबसे प्रबल धारा बौद्ध और जैन धर्मावलम्बियों की थी। यह विरोध किन्हीं भी परिस्थितियों में ब्राह्मण वर्ग का नहीं था। जैन साहित्य बार-बार श्रमण और ब्राह्मण (माहण) को एक दूसरे के For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.525057
Book TitleSramana 2006 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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