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________________ ७६ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक १/जनवरी-मार्च २००६ बताता है। इन्हें वेदांगों में परिपक्व बताता है। ये परिव्राजक दान, शौच, आचार शास्त्र का पालन करते हुए विचरण करते थे। इन्हें विशेष प्रकार के नियमों का पालन करना पड़ता था। परिव्राजकों के लिए जिन नियमों का प्रावधान जैन सूत्र बतलाते हैं, वह भी श्रमणों के नियमों से कम नहीं हैं। विपरीत परिस्थितियों में भी ये परिव्राजक तप छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। महावीर स्वामी के सम्पर्क में आने पर भी यह परिव्राजक श्रमणोपासक ही बने रहेंगे। अम्बड के प्रसंग में उल्लेख मिलता है कि कठिन तप, साधना के बाद भी परिव्राजक रहते हुए वह श्रमण नहीं बन पाया और दूसरा जन्म लेकर साधना करनी पड़ी, तब श्रमण परम्परा में दीक्षित हुआ।५९ प्रव्रजित श्रमणों का उल्लेख भी जैन साहित्य स्थान-स्थान पर करता है। जो मनुष्य रूप में उत्पन्न होते हैं और प्रव्रजित होकर धीरे-धीरे अनेक रूप में श्रमण बन जाते हैं, जैसे कंदप्पिया-कान्दर्पिक (हास परिहास करने वाले), कुक्कुइयाकौकुचिक (भाँडों की तरह कुत्सित चेष्टा करने वाले), मोहरिया-मौखरिक (ऊटपटांग बोलने वाले), गीयर इप्पिया, गीतरतिप्रिय (गाने में अत्यधिक रुचि रखने वाले), नच्चणसीला नर्तनशील (नाचने वाले)६०; आयरिय-पडिणीया प्रत्यनीक (आचार्य विरोधी), उवज्झायपडिणिया-उपाध्याय-प्रत्यनीक (उपाध्याय के विरोधी), कुलकडिणीकुल प्रत्यनीक (कुल के विरोधी), गणपडिणीया- गणप्रत्यनीक (गण के विरोधी), आयरिय उवज्झायाणं- अयसकारगा आचार्य और उपाध्याय के अयशस्कर अपयश करने वाले), अवण्णकारगा-अवर्णकारक (अवर्णकारक, अवर्णवाद बोलने वाले), अकित्तिकारया-अकीर्तिकारक (निन्दा करने वाले)६१; अत्तुकोसिया-आत्मोत्कर्षक अपना उत्कर्ष दिखाने वाले, परपरिवाइया- परपरिवादक (दूसरों की निन्दा करने वाले), भूइकम्मिया- भूतिकर्मिक (ज्वर, उपद्रव आदि बाधाओं को शान्त करने हेतु भस्म आदि देने वाले), भुज्जोभुज्जो कोउयकारणा-कौतुकारक (भाग्योदय आदि के निमित्त चमत्कारिक बाते करने वाले)६२।। इनके अतिक्ति बालपंडित३ (बालपंडिय- सद्-असद् विवेक से रहित होते हुए भी स्वयं को पंडित मानने वाले); चण्डिदेवग (शिखाधारी), दगसोयरिय (किसी के द्वारा छुए जाने पर चौसठ बार स्नान करने वाले) धम्मचिंतक (धर्मग्रंथ पढ़ने वाले), गियरै (संगीत और प्रेम में रुचि रखने वाले), गोम (छोटे बैल को कोडियों से सजा, भिक्षा मांगने वाले, चावल खाने वाले ), गौवैया (गाय की तरह घास व पत्ते खाकर, गाय के पीछे-पीछे घूमने वाले), कम्मारभिक्खु (मूर्ति लेकर शोभायात्रा निकालने वाले), कुच्चिय (मूंछ, दाड़ी रखने वाले), परपरिवाइय (अन्य भिक्षुओं की निन्दा करने वाले), पिन्डोलग (गंदे रहने वाले), ससरक्ख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525057
Book TitleSramana 2006 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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