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________________ महावीर कालीन मत-मतान्तर : पुनर्निरीक्षण : ६७ लिखने वाले विद्वानों ने भी ऐसा प्रयास किया है, पर वह बहुत कम है। उदाहरण के लिए कैलाश चन्द शास्त्री का “जैन साहित्य का इतिहास' (२ भाग) एवं कैलाश चन्द जैन का Lord Mahavira and his times. प्रो० कैलाश चन्द जैन ने काफी विस्तार से ग्रंथ के एक अध्याय में इस विषय पर प्रकाश डाला है। महावीर के समय प्रचलित दर्शन, श्रमण परम्परा, तपस्वियों, परिव्राजकों के उल्लेख के साथ-साथ देवी-देवताओं, उनकी पूजा पद्धति सभी पर प्रकाश डाला है। कुछ सन्दर्भ उनसे छूटे हैं, जो इस लेख में लिए गए हैं। दूसरी ओर इस लेख में मुख्य रूप से जैन साहित्य के माध्यम से सामग्री एकत्रित करने का प्रयास किया गया है। जैन साहित्य के आधार पर जो सूची अलग से तैयार की गई है, वह डॉ० जैन की सूची से बड़ी है। साथ ही इन मत-मतान्तारों का समीक्षात्मक विश्लेषण कर कुछ निष्कर्ष निकालने का प्रयास किया गया है। इस दृष्टि से इस लेख में महावीर कालीन पंथों, ब्राह्मणों, श्रमणों, तपस्वियों, संन्यासियों के भिन्न-भिन्न वर्गों का उल्लेख किया गया है। साक्ष्य के रूप में जो जैन साहित्य, विशेष रूप से उपयोग में लिया गया है, वह है, सूत्रकृतांग सूत्र (सूयगडंग), औपपातिक सूत्र (ओववाइय सूय), भगवती सूत्र या व्याख्या प्रज्ञप्ति (वियाहपण्णति) । इन ग्रन्थों से प्राप्त जानकारी का समीकरण कई स्थानों पर तत्कालीन अन्य साक्ष्यों से भी करने का प्रयास किया गया है। छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व में इन सम्प्रदायों के लिए तित्त्थीय, तीर्थंकर, वाद, दर्शन, प्रावादुक, शास्ता, यूथिक, तीर्थक (उत्थिय) श्रमण, भिक्षु, यति, मुनि, ब्राह्मण, परिव्राजक, संन्यासी, बैखानस, निगण्ठ आदि शब्द प्राप्त होते हैं। सर्वप्रथम साहित्य में वर्णित ६२ और ३६३ विभाजनों को देखें। दीघनिकाय के ब्रह्मजाल सुत्त में बुद्ध के द्वारा दिए गए १८६ प्रवचनों को ब्रह्मजाल कहा गया, एवं इसके द्वारा, भगवान बुद्ध ने शिष्यों के अज्ञान को इस जाल रूपी ज्ञान के द्वारा छाना और इसी सन्दर्भ में प्रचलित 'मिथ्यावादों की चर्चा की, उनका खण्डन किया एवं अपने मत की प्रतिष्ठा की। इसमें वर्णित वादों की सूची निम्न है : सस्सतवाद, एकच्च सस्सतवाद, अन्तान्तवाद, अमराविक्खेपवाद, अधिच्चसमुप्पन्नवाद, सञ्जीवाद, असञ्जीवाद, उच्छेदवाद, दिट्ठधम्म निब्बानवाद। दीघनिकाय के महासीहनादसुत्तों में इन्हीं वादों की श्रृंखला में कुछ वादों का और उल्लेख है - जैसे उजुविपच्चनीकवाद, कालवाद, भूतवाद, अत्थवाद, धम्मवाद, विनयवाद। पुनः सामञफल सुत्तरे में पूरणकस्सपवाद, मक्खलिगोसालवाद, अजितकेसकम्बलवाद, पकुधकच्चायनवाद, निगण्ठनातपुत्तवाद, सञ्जयबेलट्ठपुत्तवाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525057
Book TitleSramana 2006 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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