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________________ प्रतीत्यसमुत्पाद और निमित्तोपादानवाद : ६३ होती है जो यह बताती है कि प्रत्येक द्रव्य का विवक्षित कार्य, विवक्षित समय में होगा। इस प्रकार द्रव्यशक्ति से युक्त पर्याय-शक्ति ही कार्यकारी है, न अकेली द्रव्यशक्ति और न केवल पर्यायशक्ति।१३ यदि निमित्त कारण को सम्मिलित कर कहा जाए तो इस प्रकार से कहना होगा कि सहकारी कारणसापेक्ष विशिष्ट पर्यायशक्ति से युक्त द्रव्यशक्ति ही कार्य को उत्पन्न करने में समर्थ है। इस प्रकार जैनदर्शन त्रिकाली उपादान कारण सहित क्षणिक उपादान कारण व निमित्त कारण को स्वीकृत कर कार्य-कारण सम्बन्धी समस्त एकांगी मतों का निराकरण करता है। पूर्वोक्त विवेचन से यह निष्कर्ष निकलता है कि अनेकधर्मात्मक वस्तु ही कार्य-कारण व्यवस्था की कसौटी पर खरी उतर सकती है, एकधर्मात्मक वस्तु नहीं।१४ तथा यह बात स्पष्टतया परिलक्षित होती है कि प्रतीत्यसमुत्पाद में कार्यकारण व्यवस्था अविरोधरूप क्यों नहीं बन सकती। कारण कि - (१) बौद्ध-दर्शन में पदार्थ क्षणिक होने से कारण के अभाव में कार्य की उत्पत्ति को स्वीकार किया गया है जो कि असम्भव है; क्योंकि जब कारण रूप से माना गया पदार्थ कार्य कि उत्पत्ति के समय नष्ट हो जाता है तब उसके द्वारा कार्य उत्पन्न कैसे होगा? वास्तव में, कारण के सद्भाव में ही कार्य उत्पन्न होता है, उसके अभाव में नहीं। (२) कारण के अभाव में कार्योत्पत्ति मानने पर यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या कारण की सत्ता के साथ कार्य की उत्पत्ति का विरोध है जिसके कारण कार्य को अपनी उत्पत्ति के लिए कारण के अभाव की प्रतीक्षा करनी पड़े अर्थात् जब कारण का अभाव हो जाय तब कार्य की उत्पत्ति हो सके, परन्तु कार्य की उत्पत्ति कारण के अभाव की प्रतीक्षा नहीं करती है। यदि कारण के अभाव होने पर कार्य निष्पन्न हो तो वह कार्य कारण के बिना ही उत्पन्न कहलाएगा तथा ऐसे कार्य में देश, काल और स्वभाव का कोई नियम नहीं बनेगा और जो अकारण है उसके सर्वत्र, सर्वदा और सर्वथा उत्पन्न होने का प्रसंग प्राप्त होगा। एक बात और द्रष्टव्य है कि बौद्ध दर्शन के अनुसार, भाव और अभाव का परस्पर में कार्यकारण भाव प्राप्त होगा, परन्तु अभाव किसी का कारण नहीं होता है। अत: कार्य के काल में कारण का सद्भाव मानना आवश्यक है इसके बिना त्रिकाल में भी कार्य की उत्पत्ति सम्भव नहीं है।१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525057
Book TitleSramana 2006 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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