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________________ धम्म चक्र प्रवर्तन सूत्र : मानवीय दुःख विमुक्ति का निदान पत्र बौद्ध साहित्य में यह उल्लेख मुझे पढ़ने को नहीं मिला कि अनुत्तर पुरुष बुद्ध ने जिस 'धम्म चक्क' को घुमाया था उसमें कितने आरा गज, तीलियां या स्पोक्स थे? लेकिन बौद्ध कला में इसका चित्रांकन अवश्य प्राप्त होता है। सबसे पहले सम्राट अशोक ने प्रस्तर स्तम्भों पर धम्म चक्र बनवाया जिसमें २४ तीलियाँ हैं। धम्म सर्वोपरि है इसलिये स्तम्भ में अन्य बौद्ध धम्म के प्रतीकों में सबसे ऊपर यह धम्म चक्र बनवाया गया था। इसका सबसे अच्छा उदाहरण सारनाथ के स्तम्भ का शीर्ष भाग और चक्र है। : ५५ बौद्ध साहित्य में ‘शाक्य मुनि बुद्ध' को ३२ महापुरुष लक्षणों से युक्त बताया गया है। इसका भी अंकन कला में चक्का बनाकर किया गया जिसमें ३२ तीलियाँ हैं। ऐसे चक्र को धम्म चक्क नहीं, 'बुद्ध-चक्र' कहा गया है। धम्म चक्र में २४ तीलियाँ ही क्यों हैं, इसका विवेचन अगले पृष्ठों में किया जायेगा। पवत्तनः इस पद का तीसरा भाग 'पवत्तन' है जिसका तात्पर्य है प्रवर्तन करना, गति प्रदान करना या घुमाना । इससे यह आभासित होता है कि धम्म चक्र था तो इसके पहले भी लेकिन गतिमान न होकर स्थिर हो गया था। यह उल्लेखनीय है कि गौतम बुद्ध के पहले भी बुद्ध हुये थे और उन्होंने भी “धम्म चक्र प्रवर्तन" किया था। ऐसे पूर्व बुद्धों की संख्या ६, २३ और २७ बताई गई है। इनमें गौतम बुद्ध का स्थान क्रमश; ७वाँ २४वाँ और २८वा रहा है। चक्का घुमाने के सम्बन्ध में यह भी स्पष्ट उल्लेख नहीं प्राप्त होता कि तथागत ने अपना धम्म चक्र किस ओर से किस ओर अर्थात् घड़ी की सुई की तरह अथवा उसके विपरीत घुमाया था। दोनों में अन्तर यह है कि एक कसने वाला है और दूसरा खोलने वाला है। आगे यथा स्थान इस पर विचार किया जायेगा। विद्याचरण सम्पन्न बुद्ध के उपदेशों की यह विशिष्टता है कि वे लोगों के सामने किसी बात का पक्ष-विपक्ष अथवा अच्छाई-बुराई का वर्णन कर उसे अच्छाई की ओर मोड़ते थे। ताकि श्रोता स्वयं निर्णय और निश्चय कर सकें। सुत्तः इस पद का अन्तिम भाग सुत्त है। सुत्त का तात्पर्य सूत्र अर्थात् अति संरक्षित रूप से है। यहां इसका तात्पर्य भगवान बुद्ध के 'प्रथम धम्म चक्र प्रवर्तन सूत्र' से है जिसका प्रवर्तन उन्होंने सारनाथ (ऋषि पत्तन मृगदाव) में किया था ।' इसे सबसे पहले उन्होंने अपने पाँच शिष्यों को बताया था जो बौद्ध साहित्य में 'पंचवर्गीय भिक्षु' नाम से प्रसिद्ध हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525057
Book TitleSramana 2006 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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